तेरा पारितोषिक
ललित कुमार द्वारा लिखित, 1 अगस्त 2004 जीवन कर्म प्रधान है और जीवन जीने का शायद सबसे उत्तम तरीका कर्मयोगी […]
ललित कुमार द्वारा लिखित, 1 अगस्त 2004 जीवन कर्म प्रधान है और जीवन जीने का शायद सबसे उत्तम तरीका कर्मयोगी […]
ललित कुमार द्वारा लिखित, 26 अगस्त 2012 आज सागर का दिल बेचैन है उसके सीने पर तैरती बेढब कारोबारी नौकाओं
ललित कुमार द्वारा लिखित, 27 जुलाई 2012 आज मन बहुत कष्ट में है इस मन में कुछ भी नहीं है
ललित कुमार द्वारा लिखित, 25 जुलाई 2012 बहुत दिन से मैंने कुछ नहीं लिखा… ज़िद थी कि इस बार लिखूँगा
ललित कुमार द्वारा लिखित, 17 जून 2006 मेरी रची रचनाएँ अक्सर मुझसे पूछती हैं कि ओ रचनाकार तुम ये अन्याय
ललित कुमार द्वारा लिखित, 06 अप्रैल 2012 भीतर क्या है कोई न जाने आहत करना बस ये जग जाने इनको
ललित कुमार द्वारा लिखित, 06 अप्रैल 2012 मृगतष्णा (सराब) अपने आप में एक अनोखी चीज़ होती है। मजबूर… अपने अस्तित्व
ललित कुमार द्वारा लिखित, 05 अप्रैल 2012 अहसास पुराना है… शब्द अब दे पाया हूँ… हृदय का प्याला जब टूटा
ललित कुमार द्वारा लिखित, 05 अप्रैल 2012 ज़िन्दगी श्वेत-श्याम हो गई है रंग मेहमानों की तरह जैसे सम्पन्न हो चुके
ललित कुमार द्वारा लिखित, 16 मार्च 2006 हर तारे का एक तारा साथी गिन-गिन देखे हमनें तारे पूरब से पश्चिम
ललित कुमार द्वारा लिखित, 07 मार्च 2012 मेरी किसी बात में तुमको तो कभी कोई बात नज़र नहीं आती ख़बर
ललित कुमार द्वारा लिखित; 20 फ़रवरी 2012 सायं 6:00 एक नई रचना… बस यूँ ही लिख दी… मैं ख़्वाहिशमंद हूँ
ललित कुमार द्वारा लिखित; 22 जुलाई 2006 सायं 6:00 जुलाई 2006 में जब मैं कविता कोश वेबसाइट की रचना कर
ललित कुमार द्वारा लिखित; 09 अक्तूबर 2003 को लिखित यह कविता मैंने 09 अक्तूबर 2003 की सुबह का अखबार पढ़ने
ललित कुमार द्वारा लिखित; 08 फ़रवरी 2012 को लिखित आज यह कविता लिखी है… अपने फ़लक के चांद को कुछ
ललित कुमार द्वारा लिखित; 26 अगस्त 2003 एक पुरानी कविता… जिसकी याद हमें है आती चलो मन ढूँढे अपना साथी
ललित कुमार द्वारा लिखित; 31 जनवरी 2012 एक नई कविता… आदर-सा जो लगता हो नहीं चाहिए ऐसा प्यार चाह मुझे
ललित कुमार द्वारा लिखित; 25 दिसम्बर 2011 आज मन में आए कुछ विचारों को इस कच्ची कविता में प्रस्तुत किया
ललित कुमार द्वारा लिखित; मैं चाहता हूँ मिट जाऊँ मैं और मेरा निशां बाकी ना रहेना किसी के मन में
ललित कुमार द्वारा लिखित; 10 सितम्बर 2011 जिस्म में हरक़त ज़रूरी है के जीने की चाह अभी पूरी है पर
ललित कुमार द्वारा लिखित; 18 अगस्त 2011 एक ग़नुक… जी सकने का अब मुझको, कोई तो आधार चाहिए मेरा हो