ललित कुमार द्वारा लिखित, 20 अक्तूबर 2003
मरूस्थल दुख और सूनेपन की परिभाषा है। कुछ मरुथल भावनात्मक भी होते हैं और ये हमारे मन में दूर तक फैले होते हैं। यह कविता आपको ऐसे ही एक मरुस्थल से परिचित कराती है…
झुलसाती हवा आपका वंदन करती है
तपती जलती रेत माथे चंदन धरती है
कंठ सुखाती प्यास करती तो परेशान है
जीवन हरेगी नहीं कि आप यहाँ मेहमान हैं!
हूँ दुविधा में कि आपको
यहाँ क्या दिखलाऊँ
नयनाभिराम है कुछ नहीं
दूर चाहे जितना जाऊँ
इन पदचिन्हों को देखिये
यहाँ से अभी अभी कुछ यादें गई हैं
काल कालिमा छा चुकी है पर
अब भी लगती सर्वथा नई हैं
उस ओर दृष्टि ना डालिये
वहां कंकाल पडे हैं कुछ सपनो के
यही अवशेष बचे हैं उस घर के
जो बनाया था साथ अपनों के
यहाँ आपको दिखे जो
पीड़ा के अलावा है
कुछ और है नही वो
मृगतृष्णा है बस छलावा है
जाने आपको क्या सूझी
कि आप यहाँ चले आए हैं
रंगो से भरे विश्व को देखें
यहाँ क्या करनें आए हैं?
कोई भी आता नहीं यहाँ
बस भूले-भटकों की ही आगत है
अब आप आए हैं तो आइये
मेरी मन मरूस्थली में
आपका स्वागत है!
कविता पढ़कर … सुन कर आँखें भर आयें तो अचरज नहीं….
ये अभिव्यक्ति तो ……….पाषाण तक का हृदय आंदोलित कर दे !!!!!
subhkamnayen!
कोई भी आता नहीं यहाँ
बस भूले-भटकों की ही आगत है
अब आप आए हैं तो आइये
मेरी मन मरूस्थली में
आपका स्वागत है….
itna kuchh kah diya aapne ki hamare kehne layak kuchh bacha hi nahi…
Bhasha par aapki behtareen pakad hai Lalit. Sabdoon aur Kalpanaon ko pida k aanchal main sundar sajaya hai…..par its ……..
ये कविता ललित जी बहुत अच्छी है बल्कि बहुत ज्यादा अच्छी
संवाद की बेहतर शैली में लिखी है आपने
ये कला दुर्लभ है
Its really a great idea to make Ganesha with quilling. I am very much interested to make such types of quilling designs.
You are an oasis in the desert.
मरुस्थल की चाँदी-सी चमकती रेत असंख्य लोगों को लुभाती है ! शरद चाँदनी में यह रेत सम्मोहन का जाल बुनती है ! इस रेत का एक विशेष गुण, खास खूबी है कि यह निर्मल है | आप इसमें सन कर मैले नहीं होते ! यह मैलापन हरती है ! चिकनाई ( दोहरे मापदंड के लोग जो लुभाते अवश्य हैं किन्तु देते तकलीफ़ ही हैं ) को भी अपनी तपिश से स्वच्छ बना देती है |
तो यह रेत चन्दन है और चन्दन तो केवल शीतलता और सुवास ही देता है |यह रचना पाठकों को आपकी ओर खींचती है | बहुत सुंदर !
wow!
कोई भी आता नहीं यहाँ
बस भूले-भटकों की ही आगत है
अब आप आए हैं तो आइये
मेरी मन मरूस्थली में
आपका स्वागत है!………. वाह !