आओ ज़िन्दगी एक बार गले मिल लें

ललित कुमार द्वारा लिखित; 18 मई 2007 शुक्रवार प्रात: 4:30

मौत के साथ मैं हमेशा से ही बेतकल्लुफ़ रहा हूँ। इसके जो भी कारण रहे उनमें ना जाते हुए केवल इतना कहना चाहूंगा कि यह रचना पुरानी है और मौत की तरफ़ मेरी बेतकल्लुफ़ी कम हुई है।

आओ ज़िन्दगी एक बार गले मिल लें
वक़्त बिछड़ने का आ गया

बहुत कुछ तुमने मुझे दिया
पर यूँ जैसे टुकड़ों को सिया

कम देती पर स्नेह के साथ देती
जब गिरा तो थाम मेरा हाथ लेती

तुमने शब्द दिये पर अर्थ नहीं
सुंदर सपने दिये सामर्थ्य नहीं

मौसम दिये लेकिन बहार नहीं
दिल दिया पर किसी का प्यार नहीं

वन, पर्वत, नगर और गाँव दिये
चल सकने को नहीं पाँव दिये

अब अंत आ चुका मेरे निकट है
तुमसे बिछड़ना कितना विकट है

क्या हुआ जो तुमने तिरस्कार किया
पर मैनें तो तुमको प्यार दिया

विदाई है मेरी आँखे नम हैं
मुझे आशा अधिक दुख कम है

तुम्हारी तरह वो नहीं सताएगी
गोद में मृत्यु मुझे सुलाएगी

मैं रहा बिखरा बिखरा अब तक
अब वक़्त सँवरने का आ गया

आओ ज़िन्दगी एक बार गले मिल लें
वक़्त बिछड़ने का आ गया

14 thoughts on “आओ ज़िन्दगी एक बार गले मिल लें”

  1. क्या हुआ जो तुमने तिरस्कार किया
    पर मैनें तो तुमको प्यार दिया

    मैं रहा बिखरा बिखरा अब तक
    अब वक़्त सँवरने का आ गया

    Sher man ko choo gaye Lalit.

    Zindgi sabko kuch na kuch kam hi deti hai…..lekin fir bhi hausla deti hai ….aur hausla hi jeevan hai

  2. aapki tasveer ke saath jo sher hai
    wo to lajawaab hai

    Zindgi se bhara hua

    “सूरज हूँ ज़िन्दगी की रमक़ छोड़ जाऊँगा
    मैं डूब भी गया तो शफ़क़ छोड़ जाऊँगा

  3. जिंदगी और मौत के बीच जूझती हुई सुन्दर कविता…..
    हर राही की सच्चाई यही तो है … जीवन अपना होते हुए भी कितना पराया है….
    आशा से मौत की गोद की राह देखती जिंदगी की व्यथा कितनी सहज सी है…. उस ममतामयी गोद की ओर ही तो हम हर क्षण कदम बढ़ा रहे हैं…. जिंदगी के प्रति आस्था और प्रेम भी उतना ही है… जीवन और मौत का रहष्य कौन जाने !!!
    जिंदगी हृदय से लगा ले…
    जिजीविषा से परिपूर्ण
    दिवारात हो !
    आशा की किरणों से
    सजा रहे अम्बर
    जीवन में नवप्रभात हो !

    शुभकामनायें…

  4. ललित जी !!अभी तक जितनी आपकी रचनाये पढी है ये मुझे सबसे खूबसूरत लगी !

    सम्पूर्ण कविता ही अच्छी है । मुबारक हो ।

    इन भावनाओ पर बहुत अच्छे -अशआर कहे गये है –

    अब अंत आ चुका मेरे निकट है

    तुमसे बिछड़ना कितना विकट है

    ये क्याअ तिलस्म है जब से किनारे दरिया हूँ

    शिकेब और भी कुछ बढ गयी है रूह की प्यास -शिकेब जलाली

    मैं रहा बिखरा बिखरा अब तक

    अब वक़्त सँवरने का आ गया-

    अहदे जवानी रो-रो काटी पीरीं मे ली आँखें मूँद

    यानी रात बहुत जागे थे सुभ हुयी आराम किया -मीर

    विदाई है मेरी आँखे नम हैं

    मुझे आशा अधिक दुख कम है-

    वो अलविदा का मंज़र वो भीगती पलकें

    पसे ग़ुबार भी क्या क्या दिखाई देता है -शिकेब

    पर बहुत अच्छे -अशआर कहे गये है –

  5. मौत जिसको कह रहे हो, जिंदगी का नाम है.

    मौत से डरना डराना, कायरों का नाम है.

    मुर्दा दिलों की क्या कहें, जो रोज़ ही मरते रहें.

    जिंदा दिलों का तो सदा ही, जिंदगी से काम है.

    जिंदगी की लहर हरदम, ज्यों की त्यों कायम रहे.

    जिंदगी ही जिंदगी है, मौत का क्या काम है.

    रूप चाहे दूसरा हो, भावना वह ही रहे.

    भावना मौजूद रहते, मौत का क्या काम है.

    जगमगाती ज्योति कभी, बंद हो सकती नहीं.

    जगमगाती ज्योति को,न विराम है, न विश्राम है.

    मौत जिसको कह रहे हो, जिंदगी का नाम है.

    मौत से डरना डराना, कायरों का नाम है…

    Sharda Monga

    जगमगाती ज्योति को,न विराम है, न विश्राम है.

    मौत जिसको कह रहे होजिंदगी का नाम है.

    मौत से डरना डराना,कायरों का नाम है…

    Sharda Monga

  6. प्रिया, यह शेर मेरा नहीं है। रचनाकार का नाम भी मुझे नही पता -पर मैं जानना चाहता हूँ ताकि पूरी ग़ज़ल पढ़ सकूँ। यह शेर मुझे बहुत प्रिय है क्योंकि ये मेरे बारे में बहुत कुछ कहता है।

  7. मर्मस्पर्शी कविता है ललित जी , मन को बेचैन कर गई

  8. तुम्हारी तरह वो नहीं सताएगी
    गोद में मृत्यु मुझे सुलाएगी
    उक्त लाइनों में दर्शन का पूण स्वरुप दिखाई पड़ता है….सो अच्छी कविता के लिए हार्दिक शुभकामनाये….

  9. क्या हुआ जो तुमने तिरस्कार किया

    पर मैनें तो तुमको प्यार दिया

    विदाई है मेरी आँखे नम हैं

    मुझे आशा अधिक दुख कम है

    Aap tou Rula kar hi Manege lalitji!

  10. dr.bhoopendras singh

    Very beautiful blog with fantastic landscapes and sentimental poems.The content is excellent and appealing.My heartiest best wishes for you personally.I liked yr blog very much and became yr friend atleast online immidately.
    thanks,
    dr.bhoopendra

  11. विदाई है मेरी आँखे नम हैंमुझे आशा अधिक दुख कम है
    तुम्हारी तरह वो नहीं सताएगीगोद में मृत्यु मुझे सुलाएगी
    very touching lalit ji

  12. आज लिंक काम कर रहा था…

    आपकी आवाज़ में जितनी कवितायेँ हैं…, सब सुने कई-कई बार… फिर से!

    उन्हें सुनते हुए अजीब मनःस्थिति हो जाती है मेरी… जिए गए शब्दों को जब
    आवाज़ मिलती है, तो ही ऐसा हृदयस्पर्शी अद्भुत प्रभाव होता होगा न…

    आपकी कविताओं के आसपास मंडराता मन प्रार्थनारत हो जाता है…

    सपने हैं, सामर्थ्य भी देंगे प्रभु!

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