ललित कुमार द्वारा लिखित; 28 फ़रवरी 2011
आज एक नई कविता लिखी…
मैं उजला ललित उजाला हूँ!
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
तेरे मन के तम से लड़ता हूँ
तेरी राहें उजागर करता हूँ
आओ मुझे बाहों में भर लो!
मुझ सा कोई प्यार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
तेरे रोम-रोम में भर जाता हूँ
तेरे दर्द को मैं सहलाता हूँ
आओ मुझे देह में भर लो!
मुझ सा कोई उपचार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
यूं तो नहीं मेरा कोई भी रूप
हूँ मैं ही चांदनी, मैं ही धूप
आओ मुझे अंजुली में भर लो!
मुझ में कोई भार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
क्यों मन में भय को भरते हो
क्यों अंधियारे से डरते हो
आओ मुझे अंखियों में भर लो
मुझ सा कोई दीदार नहीं है
मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!
मैं उजला ललित उजाला हूँ!
bahut hi pyari rachna hai, aur sach bahut hi achh alaga padhkar, yunhi pyara-pyara likhte rahiye.
shubhkamnayen
Prabhu se prarthna hai ki ye ujala, lalit ujala is purey jag ko roshan karta rahe..aur yun hi hum jaise logon kii andheri zindagiyon me asha kirane bikharta rahe…
Itni sunder rachna ke liye aabhaar!!
Aapke kalam ka jaadoo yunhi barkaraar rahe!!
सर….
कविता हमेशा की तरह बहुत ही अच्छी है…
लेकिन ये 'Future' में कैसे लिखी आपने? 28 May 2011 को कैसे लिख दी???
वो ग़लती से लिखा गया था… तिथि को अब ठीक कर दिया है…
Bahut bahut bahut, Sundar abhivyakti hai… such kahoon tou” Ab maine par khool liye hain” ke baas yeh ek kavita hai jismain apke vyaktitva ka sahi aanklan hai.
The words and emotions are just Killing :], I really wish that u'll find ur love of life soon!
Tere rom-rom mein bhar jaata hoon
tere dard ko main sehlaata hoon
aaow mujhe deh main bhar lo!
mujh saa koi upchaar nahi hei
AAH,kitne hi dino ke baad marham mila hei,
yeh jo dard tha tadpa raha tha…….thanks lalit ji….
बहुत खुबसूरत एक विश्वास से भरी हुई रचना जो निरंतर आगे ही आगे बड़ते रहने का संकेत कर रही हो और सबके अन्दर एक ताकत का निर्माण कर इसे अपना कर चलने का सन्देश दे रही हो |
सार्थक रचना |
सुन्दर कविता.. दिनकर की कविताओं सा हुंकार है इनमे..
Shabdon ki saralta se ye kavita aur bhi jyada sunder ho gayi hai.
सूर्य हो तुम प्रेरणा के चेतना के धाम हो ,
ज़िंदगी का राग हो तुम काव्य का आयाम हो .
ललित हो तुम हो महकते ज्यूँ चमन में चांदनी,
ह्रदय को हो मदिर करते जैसे बन के वारुनी !
अत्यंत सुंदर रचना – प्रत्येक पंक्ति दिल में रच-बस जाने वाली !
“मैं हूँ तो फिर अंधकार नहीं है!” सदा यही विश्वास बनाए रखिये ! बहुत ही खूबसूरत !
khoob likha he aapke ander ak aag he jo kevita ke roop men nikal rehee he jo hum sabko bahut kuch de jaaygee
क्यों मन में भय को भरते होक्यों अंधियारे से डरते होआओ मुझे अंखियों में भर लोमुझ सा कोई दीदार नहीं है are best lines according to me