तुम बैठी ऐसी लगती हो

ललित कुमार द्वारा लिखित, 01 फ़रवरी 2007

यह कविता मेरी कल्पित कल्पना का वर्णन है। इसमें वर्णन है एक पावन छवि का… एक सुंदर मन का… एक करुणामयी, प्रेममयी, संवेदनशील हृदय का… ऐसे चरणों का वर्णन है जिनके कारण यह धरा सुंदर है… ऐसे हाथों का वर्णन है जो सब दुख-दर्द हर लेते हैं… तन-मन की सुंदरता से परिपूर्ण एक सुंदर मनुष्य का वर्णन है… इतनी सुंदरता नारी के अलावा और किसमें हो सकती है भला?

तुम बैठी ऐसी लगती हो
इस घने आम की छाँव में
जैसे कोई पावन मंदिर हो
इक छोटे से गाँव में

बड़ी मनभावन लगती हैं
ये सुंदर प्यारी हथेलियाँ
जैसे प्रेम से सजी हुई हों
दो पूजा की थालियाँ

काजल लगे नयन खिले हैं
ज्यों आने से वसंत नवल के
हैं ज्यों श्याम के चरणों पर
रखे हुए दो फूल कमल के

आरती की घंटियाँ बजें लगती
जब पायल बजती पाँव में

तुम बैठी ऐसी लगती हो
इस घने आम की छाँव में
जैसे कोई पावन मंदिर हो
इक छोटे से गाँव में

उजाला करती मन के अंदर
माथे पर बिंदिया दमकती
नाक का मोती है जैसे कि
दीपों की हो ज्योति चमकती

सुगंध है साँसो में जैसे
पुष्पों ने दिया खजाना खोल
पंखुरी से होंठो से आती
वाणी है ज्यों वीणा के बोल

और मन ऐसा निर्मल है कि
जीते सब कुछ एक दाँव में

तुम बैठी ऐसी लगती हो
इस घने आम की छाँव में
जैसे कोई पावन मंदिर हो
इक छोटे से गाँव में

11 thoughts on “तुम बैठी ऐसी लगती हो”

  1. Mahendra mishra

    बहुत सुन्दर रचना…..पढ़कर आनंद आ गया… धन्यवाद

  2. तुम बैठी ऐसी लगती हो
    इस घने आम की छाँव में
    जैसे कोई पावन मंदिर हो
    इक छोटे से गाँव में

    ye kavita nahi ye prem aur shradha ke phool hain…
    natmastak hun is adhbut rachna ke saamne….
    tan man ki sunderta ka advitiyaa varnan….

  3. आरती की घंटियाँ बजें लगती
    जब पायल बजती पाँव में
    तुम बैठी ऐसी लगती हो
    इस घने आम की छाँव में
    जैसे कोई पावन मंदिर हो
    इक छोटे से गाँव में

    Sahab Ji,

    Aapki to jitni bhi tareef ki jaaye bahut hi kam hai…. Kya kah jaate ho…

    Waah bhai waah…. 🙂

  4. Kaveeta Prasad01

    Wow………I'm speechless!!!

    Your selection of picture, also depicts your respect towards women.

    Aapko shat-shat Naman Lalit.

  5. “और मन ऐसा निर्मल है कि
    जीते सब कुछ एक दाँव में…..”
    आपकी यह पंक्ति कितनी प्रभावशाली है ललित ….
    ऐसा कोई मिले तो हमे भी दर्शनार्थ अपनी गली बुलाना भाई !

  6. Pehli chaar panktian pathak ko le bethti hain. Sringaar charam seema par hai. Yet, is love all that pure?

  7. bahut sunder likha hai
    तुम बैठी ऐसी लगती हो
    इस घने आम की छाँव में
    जैसे कोई पावन मंदिर हो
    इक छोटे से गाँव में

    jaha prem ho wohi pooja hai aur wohi mandir ban hi jana hai hai na??

  8. jivan chandan van sa mahka jab ur me tum ayye…
    barबरबस खिंच जाते प्राण किसी की दृष्टि से उन्मादित
    तन मन विस्मृत ,अस्तित्व शेष बस हो जाता आह्लादित
    मरुत से उड़ जाते उर में भर सुगंध सुमनों की
    कभी लहर सा खेले जीवन गोदी में सागर की
    मृत्यु हो तुम या हो जीवन नहीं समझ में आया
    कभी ह्रदय में बसे प्राण बन कभी छीन ली काया

  9. कविता तो लाजवाब है पर साथ का चित्र ज़्यादा सुकुमार लगा,बहुत सुन्दर ।

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