किसी ख़ामोश शाम को

ललित कुमार द्वारा लिखित, 14 फ़रवरी 2007

किसी ख़ामोश शाम को जब मैं
बैठा अकेला क्षितिज की ओर
शून्य में निहार रहा होंऊ
किसी गहरी उदासी में गुमतब कोई बैठे पास आकर
और पूछे प्यार से
अपनेपन और अधिकार से
“क्या बात है?”
मैं चाहूँ कुछ कहना
किन्तु यदि वाणी न दे साथ
तब कोई मेरे मन को
मेरे चेहरे से पढ़ ले
और थाम ले मेरा हाथ
मुझे बताने को कि मैं
अकेला नहीं हूँ

ज़िन्दगी क्या तुम ऐसा करोगी?
आकर पास बैठोगी?
उदास अकेला होंऊगा
किसी खामोश शाम को जब मैं

12 thoughts on “किसी ख़ामोश शाम को”

  1. You are such a fantastic poet Lalit.
    ज़िन्दगी क्या तुम ऐसा करोगी?
    आकर पास बैठोगी?
    उदास अकेला होंऊगा
    किसी खामोश शाम को जब मैं

    Aksar aisa lagta hai tumhari poems padhke ke shayad mere khayaal mere man se leke tumne kaagaz (I mean web page) par rakh diye hain….

    Hats off bandhu…

  2. You are not alone! Life is holding your hand tight/ And you Life’s. Pass hi to bethi hai zindgi/ thodi si talash to karni hogi

  3. ज़िन्दगी क्या तुम ऐसा करोगी?
    आकर पास बैठोगी?
    उदास अकेला होंऊगा
    किसी खामोश शाम को जब मैं

    bas nazar utha kar dekho shayad kahin wo aas paas ho!!

    wonderful write up!

  4. कौन कहता है की तुमने सिर्फ किताबो के सब्द पढ़े है….
    हम कहते है की तुमने जिंदगी के बुरे अहसासों को जिया है….
    दर्द कितना है इश दिल के नामो निसान में…. कोई जानता नही…
    चेहरे बहुत से है इश दुनिया में … मगर मेरे चेहरे को कोई पहचानता नही…

    हर फुल सुख जाता है.. अपनी खुशबु बिखेर के …
    हम तनहा रो लेते है … दुसरो के दर्द को अपना के…
    साया भी साथ तुम्हारा छोड़ जायेगा क़यामत के दिन….
    जीना है तो जी जिंदगी… किसी सहायक के बिन…

    फिर न होगी उदास तेरी कोई शामे….
    और हर पल होगी जिंदगी तेरा हाथ थामे..

    Rgds,
    A A Soni

  5. ज़िन्दगी क्या तुम ऐसा करोगी?
    आकर पास बैठोगी?
    उदास अकेला होंऊगा
    किसी खामोश शाम को जब मैं

    bahut ghahrayi hai in shabdon mein
    hum jisse dhoond rahe hain vo toh
    hum mein hi hai, jo haath bhi thame hai
    aor rah bhi dikha rahi hai.

    aapko pahli baar padha hai
    bahut acha laga.
    nira

  6. a good poem

    kintu jab waani na de saath
    tab koi mere mann ko padh le

    kaash aisa koi saathi sabhi ko mile

  7. ‎”kisi khamosh saam ko”…. udaas …akela man…. kuch dhoondh raha ho…
    aur aise mein jindagi pure adhikaar ke saath paas aakar baith jaye…. bina kahe hi sari peeda har le… bas koi mitrawat saath ho to peeda to antardhyan ho hi jaati hai….!!!!!!!!!!!!
    iswarkripa se hum sabko aisi mitrata naseeb ho!!!
    subhkamnayen …

  8. ‘क्या बात है?’

    इसका उत्तर न देना…

    क्यूंकि हमें सब पता है.

    ज़िन्दगी आती जाती दिवा-रात है

    आप अकेले नहीं हैं…

    कोटि कोटि अंधकारों पर विजय पताका लहराते हुए

    ललित कईयों का प्रात है!

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