ललित कुमार द्वारा लिखित, 06 अप्रैल 2006
मेरी यह रचना उस हृदय की पुकार है जिसने विश्व की सारी चुनौतियों को चुनौती दी है और इस बात की घोषणा की है कि तड़पन चाहे बनी रहे लेकिन जब तक धड़कन है तब तक किसी भी कठिनाई के आगे वह नहीं झुकेगा…
आहत मन, विकृत शरीर, अस्तित्व बना है वेदना
फिर भी जीत मैं जाऊँगा विश्व तुम बस देखना
उपहास मेरा तुम क्यों करते हो ज़रा तो सोचो
देह प्रकृति की देन मैनें लिखा विधि का लेख ना
उसको पा लूँ तो मैं तारों को भी छू लूँगा
तुमने छीनी कहाँ छुपा दी बोलो मेरी प्रेरणा
विश्व लडूँगा मैं उर में अंतिम स्पंदन होने तक
टूट चुका हूँ, नहीं स्वीकार अपने घुटने टेकना
tutne par bhi ghutne na tekne wali adbhut chintan sakti ki dhara bahate raho…
hey! mitra…. vedna ki andhiyari raaton mein , prerna ke deep yun hi jalate raho…
this poem of urs is capable of moving any sensitive person….
i salute the emotion(, that made u write this poem….,) with moist eyes and touched soul!!!!!!!!!!!!
विश्व लडूँगा मैं उर में अंतिम स्पंदन होने तक
टूट चुका हूँ, नहीं स्वीकार अपने घुटने टेकना…
isay kehte hain haunsla….jab har din nayi mahabharat ho…uske liye parth apni haunsla shakti ko banana padta hai….
ek nayi taakat mehsus kar rahi aaj is rachna ko padhkar…
aabhaari hun apki!
Hmmm, Thats The spirit!
You are our inspiration Lalit!
This selection of pic is really good, because your hands are actually that much capable. 🙂
Very inspiring & heart warming.
विश्व लडूँगा मैं उर में अंतिम स्पंदन होने तक
टूट चुका हूँ, नहीं स्वीकार अपने घुटने टेकना
बहुत खूब लिखा अपने…घुटने टेकना भी नहीं चाहिए ..होता है यही जिंदगी में कभी कोई कारन होता है कभी कोई..जो हमें आकर तोड़ने की कोशिश करता है मगर अन्तियम सांस तक लड़ना एक जीवट इंसान की ही फितरत हो सकती है .
Loved reading the whole article…wonderfully narrated, nicely expressed and quite informative….
” Though its not like that I shun hard work, but it’s human nature which sometimes causes such situations to arise. “….I loved this line…thought provoking!!