मेरी रची रचनाएँ

ललित कुमार द्वारा लिखित, 17 जून 2006

मेरी रची रचनाएँ
अक्सर मुझसे पूछती हैं
कि ओ रचनाकार
तुम ये अन्याय क्यों करते हो?
व्यक्त करने में स्वंय को
जब तुम समर्थ नहीं
तो काव्य के नाम पर
हमें क्यों रचते हो?

कविता पर्याय है
भावना का
बलात्‌ जोड़े गये
शब्दों और तुकों से
कविता नहीं बनती
जल जैसा बहाव चाहिये
बर्फ़ के टुकडों से
सरिता नहीं बनती

भावनाओं को
उलझे हुए शब्दों में
पिरोने का तुम
अपराध क्यों करते हो?

काव्य के नाम पर
हमें क्यों रचते हो?

मेरी रची रचनाएँ
अक्सर मुझसे पूछती हैं…

3 thoughts on “मेरी रची रचनाएँ”

  1.  ये संवाद तो चलता ही रहता है… और बहती रहती है कविता!

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top