ललित कुमार द्वारा लिखित, 18 दिसम्बर 2004
एक और आशा; एक और प्रश्न…
कर तुम्हारा पाने को जाने क्या करना होगा
जीवन मरू में तुम्हारे प्रेम का, जाने कहाँ झरना होगा
जीवन पथ पर साथ तुम्हारे, जाने कब चल पाऊँगा
कौन घड़ी होगी वो जब, तुम्हे घर अपने मैं लाऊँगा
दैदिप्यमान जग, मेरा हृदय अंधकार में डूबा है
तुम प्रकाश बन आओ तो, दिवाली मैं भी इक मनाऊँगा
वर्षों से छाई, अनंत-सी लगती, दुख भरी रात को
तुम्हे बन नव प्रभात हरना होगा
जीवन मरू में तुम्हारे प्रेम का, जाने कहाँ झरना होगा
बिना तुम्हारे मार्ग कोई भी, नहीं मुझको स्वीकार
तुमको ही तो देख मैं देखता, निराकार साकार
प्रीत तुम्हारी मेरी साधना, और मेरा विश्वास
है सपना मंदिर से घर का, आओ दें इसको आकार
साथ तुम्हारे जीवन सफल, बिना तुम्हारे मेरा सारा
निरर्थक जीवन वरना होगा
जीवन मरू में तुम्हारे प्रेम का, जाने कहाँ झरना होगा
पुष्प चाहे हो जाए, कितना भी रंग रूप से पूर्ण
बिना सुगंध के कब कहलाता, कोई सुमन सम्पूर्ण?
थे सर्वोत्तम मानव, अवतारी, देवों के भी देव
पर बिन सीता के विश्वेश राम भी, रह जाते अपूर्ण
अभिन्न अंग हो मेरा, फिर क्यों मुझसे हो दूर
मेरे प्रेम का मान तुम्हें रखना होगा
कर तुम्हारा पाने को जाने क्या करना होगा
जीवन मरू में तुम्हारे प्रेम का, जाने कहाँ झरना होगा
एक और आशा,एक और प्रश्न –
इनका उत्तर अवश्यम्भावी हो !
जीवन में कष्ट कंटक …
क्यूँ केवल ये ही प्रभावी हो !
तुम्हे मेरी आँखों की झिलमिल बूंदों से कहना होगा…
अब उनकी जगह तुम्हे इन नयनो में रहना होगा…
अँधेरे की बेला में भी आखिर
क्यूँ हो उसका वर्चस्व.. क्यूँ निराशा मुझपर हावी हो !
एक दीप जला लूँगा आस का …
प्रश्न से उत्तर कहीं प्रभावी हो !
अकेली मेरी चेतना में रंग तुम्हे भरना होगा…
हमे एक दूसरे को भवसागर से तारना और स्वयं तरना होगा…
ये आस का तिनका और उमड़ते घुमड़ते प्रश्न ही शायद साथ चलते हैं…. और मझधार में अटकी हमारी नैया के संबल बनते हैं !
सुन्दर रचना … सुन्दर छवि!
subhkamnayen…
पुष्प चाहे हो जाए, कितना भी रंग रूप से पूर्ण
बिना सुगंध के कब कहलाता, कोई सुमन सम्पूर्ण?
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ….
पुष्प चाहे हो जाए, कितना भी रंग रूप से पूर्ण
बिना सुगंध के कब कहलाता, कोई सुमन सम्पूर्ण?
bahut gahri abhivayakti.. man se likhi hui
sunder rachna
हाथ बढ़ाकर छीनो रोटी,
मर्यादाए क्या होती हैं ?
ये मेरे पतिदेव का शेर है किन्तु आपकी कविता पढ़ते ही, जवाब यही आया अंतरात्मा से
या शायद मैं आपको उकसाना चाहती हूँ
फिलहाल आपकी इस कविता का जवाब यही दो पंक्तियाँ हैं
….this famous photograph series is novel and it’s going to be treasurable for one and all!
best wishes!!!
The picture of this falling man, I think is symbolic of the falling of humanity from the heights of civilization which shows we all are becoming barbaric in our deeds and actions…not all thinking even once before taking the lives of the innocent people!!
Beautiful write up with a heart rending picture!!
Your sensitivities are precious for all of us!