नूतन वर्ष तुम उनको लाना

ललित कुमार द्वारा लिखित; 27 दिसम्बर 2004

हर वर्ष के आखिर में मुझे इस कविता की याद ज़रूर आती है…

उनकी रही प्रतीक्षा इस जाते वर्ष भी
निराशा से बना रहा संघर्ष भी
पर ना दिन ने मेरी पीड़ा को समझा
और ना रात ने मेरी व्यथा को जाना
नूतन वर्ष तुम उनको लाना!

नवागत वर्ष दे देता है नया दिलासा
हर बीता वर्ष तोड़ गया मेरी आशा
अब आंसू ये थम ना सकेंगे
यदि चलता रहा यह खेल पुराना

नूतन वर्ष तुम उनको लाना!

है मन में मेरे श्रद्धा और विश्वास
तभी तो आ सका तुम्हारे पास
मत तोड़ना विश्वास को मेरे
श्रद्धा को मेरी भूल ना जाना

नूतन वर्ष तुम उनको लाना!

बस मैं चाहता तुमसे इक उपहार
तुम्हारा प्रथम पल ला दे उनका प्यार
चिर-ऋणी तुम्हारा हो जाऊँगा,
जो तुमने मेरी विनय को माना

नूतन वर्ष तुम उनको लाना!

सबके लिये तुम शुभता लाओ
खुशियां हर तरफ़ बिखराओ
जो हर्षित मुझे भी करना चाहो,
दे देना बस वो साथ सुहाना

नूतन वर्ष तुम उनको लाना!

3 thoughts on “नूतन वर्ष तुम उनको लाना”

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