ललित कुमार द्वारा लिखित
आज मेरा मन उदास है
किससे कहूँ?
नहीं कोई आस-पास है
किससे कहूँ?
इस सूनेपन को
एकाकी मन को
इन सन्नाटों को
अनकही बातों को
इन अंधेरों को
दुखों के घेरों को
इस गहराती रात को
अपने मन की बात को
किससे कहूँ?
आज मेरा मन उदास है
किससे कहूँ?
नहीं कोई आस-पास है
किससे कहूँ?
I’m there for you. I swear!
आदमी और प्रकृतिका तादात्म्य सम्बन्ध है।जब प्रकृति उजाड हो जाता है तो आदमी भी उदास हो जाता है।जब प्रकृति में वसन्त आजाती है तो मानव मन प्रफुल्ल हो जाति है।सायद आप भी प्रकृतिको देखकर' उदास बन गए हैं।किसि से कुछ नकहना; अपने आपको तसल्नी देना!
बेहतरीन कविता
हमसे कहो न दोस्त 🙂
अपनी बात कहने में सफल एक खुबसूरत रचना |
अकेलेपन की स्थिति को बखूबी से प्रस्तुत किया है,अच्छी अभिव्यक्ति.
bahut hi accha hai lalil g.
it makes one experience the pain of loneliness
इसे पढने के बाद अनायास ही मुझे फैज़ साब की ये पंग्तियाँ याद आ गयी “उम्मीद -ए-यार नज़र का मिजाज़ दर्द का रंग तुम आज कुछ भी न पूछो कि दिल उदास बहुत है “
jise hum mahsoos karte hain, jo shabd man me rahate hain, par itni si bat hum kisi se kah nahi pate. apne vahi baat kah di h. Really nice & simple.
kabhi kabhi inssan kitana udass ho jata hai ki usse dusaro ki jarrurt hoti hai per koi saath nahi hota hai tab woh apne aap ko bahut akela mahsos karta hai
jarroor man ko sadness se door karnee ke liye khud bhul jao……………………….
this is good
man hai manav tan hai kapda,waqt apni jindgi
tan hi ucha hota jab ,kiriya karti jindgi
man or waqt ki chaloo se, girti savrti jindgi
yahan laksya uska hai khuda ,prayatan uski bandgi………………………to be countineud plese comment fir this
kabhi koi Kishi Ke Sath Rahta Hai To Saja Milti Agar Tum Kishi Ko Pyar Karoge To Rona Tumhe Hi Padega Isliye Hamesh kabhi Kishi Ko Itna Age Mat Ane Do Ki Tumhe Rona pade ( Jab pesha Pass Hamare The tab Dost Hamare lakho The AAj pesha Hua Kahtm To puchne Vala Koi Nahi jab Bag The Hamara Hara Bhara To idhlati Hui calti the hava
उदासी ने लिखवाई कितनी सहज सरल सी कविता… “किससे कहूं?” जैसे भोले से प्रश्न का सहज सरल सा उत्तर भी शायद बस इतना ही है… “किसी से क्या कहना, जो समझने वाला होगा वो बिना कहे ही भांप लेगा!”