एक दोस्त (माधवी के लिए)

ललित कुमार द्वारा लिखित, वर्ष 2002

यह कई वर्ष पुरानी कविता है। साधारण-सी रचना है… काफ़ी हद तक वैसी जैसी कि कॉलेज जाने वाले छात्र/छात्राएँ अमूमन लिखा करते हैं। इस तरह की रचनाओं में शब्द-शिल्प की जगह तुकबंदी की ओर अधिक ध्यान रहता है।ख़ैर, जो भी हो, यह रचना मैनें अपनी एक बहुत विशेष मित्र माधवी के लिये लिखी थी। माधवी मेरे मन के बहुत करीब थीं और अब भी हैं। उन्हें मैं “सखी” कह कर बुलाता हूँ। वे एक सच्ची दोस्त हैं। विवाह के बाद से वे अपने वैवाहिक जीवन में व्यस्त हैं -बातचीत बहुत कम हो पाती है। लेकिन फिर भी मेरे मन में उनके लिये श्रद्धा उसी तरह कायम है।

एक दोस्त़ दिल की हर बात कह सकूं पास उसके आकर
एक दोस्त़ समझे मुझे जो सब बातों से परे जाकरकरूँ मैं गलती तो नाराज़ भी हो मुझ पर
लेकिन वो मान जाए मुझको शर्मिन्दा पाकर

एक दोस्त जो दोस्त से ज़्यादा और कुछ भी ना हो
एक दोस्त जिससे ज़्यादा और कुछ भी ना हो

एक दोस्त जिसको देख कर अपने पर हो नाज़
एक दोस्त जो पास आए जब मेरा दिल हो उदास

एक दोस्त जिसके लिए दिल चाहे सब कुछ करना
एक दोस्त जिसके लिए मर जाएं हम ग़र पड़े मरना

एक दोस्त जिसकी दोस्ती की ना हो कोई मिसाल
एक दोस्त बेसाख़्ता आ जाए जिसका ख़्याल

एक दोस्त करूँ दुआ जिसके लिए हर घड़ी हर पहर
एक दोस्त जो याद आए सुबह शाम रात और सहर

एक दोस्त जो कभी हँसाए तो कभी करे हैरान
एक दोस्त समझ सके जो कि मैं हूँ कुछ परेशान

एक दोस्त जो फरिश्ते सी हो महान
एक दोस्त जिसकी दोस्ती ही हो उसकी पहचान

ज़िन्दगी में दोस्तों की कोई कमी ना थी
दोस्त तो थे बहुत पर एक सखी ना थी

एक दोस्त की दिल में ऐसी कोई छवि ना थी
एक दोस्त मेरी जब तक माधवी ना थी

11 thoughts on “एक दोस्त (माधवी के लिए)”

  1. dosti aur saath ki anupam vyakhya karne wale kavi ko hamara sadhuwad:)
    lucky madhavi…… she has such a wonderful frnd like u……

  2. Dost…tumhe dost kahte hue mai sakuchata hu kabhi ghabrata hu

    par tumhe ha tumhe dost nahi kah pata hu..

  3. Wonderful thoughts and innocent emotions………She must be very good and understanding, Lucky girl!

  4. एक दोस्त जो दोस्त से ज़्यादा और कुछ भी ना हो
    एक दोस्त जिससे ज़्यादा और कुछ भी ना हो

    bemisal lalit ji….

  5. masoom aur pyaari si rachnaa…ek dost ne duje dost ko yaad kiya hai aur apni rachna usay samarpit ki hai…humen to ab Madhvi ji ka yahan intezaar hai ki unka kya kya kehna hai in komal aur adhbut bhaavon ke baare me…
    Thanx for sharing this with us Lalit!

  6. very pious! Reverence Lalitji! 

    Madhvi is really lucky to be your “सखी “. I congratulate you both for this wonderful “Dosti”.May this bond grow stronger day by day, year by year  🙂

  7. Mahavidyaupadhyay

    ye kavita har kisi ko apne dosti ki dhup-chhanw yad dilati hai aur fir madhwi ka kya kahna
    wo to madhu se hi bani hai jindgi me mithas gholna uska khas gun hai

  8. sir jisne sacche dost ko pa lia vo hairan h (ye jankar ki jindgi tere bina bhi kuch thi….?)
    aur jisne nhi paya vo pareshan h.

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