ओ पेड़… याद बहार की आती है

ललित कुमार द्वारा लिखित; 23 जनवरी 2009

“ओ पेड़” नामक शृंखला जारी है। एक और कड़ी प्रस्तुत है…

ओ पेड़
मैं जानता हूँ तुम्हे
याद बहार की आती हैरितुरानी इस ओर आती है
पर दूर से ही गुज़र जाती है
उसके यौवन का दर्पण बन सके
ऐसे पत्ते कहाँ तुम्हारे पास?
उसके माधुर्य की भीनी महक
चहूं दिशी में बिखरा सकें
ऐसे फूल कहाँ तुम्हारे पास?
बहार को अपने में समेट सकें
ऐसी क्षमता नहीं है
तुम्हारी सूखी, कमज़ोर शाख़ों में
यही कारण कि बहार आती है
और दूर से ही चली जाती है
उन लहलहाते, मज़बूत
और सुंदर वृक्षों की ओर

बहार स्वयं तो कुछ भी नहीं
वह तो फूल पल्लवों के सहारे ही
स्वयं को प्रकट कर पाती है
जो पेड़ मज़बूत होंगे
बहार उन्हीं की ओर जाती है

मैं जानता हूँ ओ पेड़
तुम्हारा दिल कितना दुखता है
सीमाहीन दुख कहाँ छुपता है?
ज्ञात मुझे तो ये भी है
कि तुम ईर्ष्यालू नहीं हो
तुम्हें दूसरे वृक्षों से
उनके सौभाग्य से
कतई कोई ईर्ष्या नहीं
तुम्हारा दिल तो भर आता है
कि असफल तुम्हारी तपस्या रही
प्रकृति और परिस्थितियों ने
तुम्हारे घुटने तोड़ दिये
फिर आती जाती तिथियों ने
नित नये कष्ट जोड़ दिये
लेकिन तुम गिरे नहीं
तुम… गिरे नहीं!
तुम्हे अब भी लगता है
बहार में वो शक्ति है
जिसे प्यार कहते हैं
प्यार कर सकता है वो
जिसे उद्धार कहते हैं

तुम ठीक ही सोचते हो
बहार के दिल में बहुत प्यार है
पर उसकी आँखों में
तुम्हारा अस्तित्व लाचार है
प्रकृति की निठुर व्यवस्था
फिर तुम्हारी निर्बल अवस्था
तुम जान लो ओ पेड़… मेरे दोस्त
बहार तुम पर कभी नहीं छाएगी
यूं ही वह दूर से गुज़र जाएगी

बस आशा बची है तुममे
वरना झरी हुई हर पाती है
ओ पेड़
मैं जानता हूँ तुम्हे
याद बहार की आती है

5 thoughts on “ओ पेड़… याद बहार की आती है”

  1. Kaveeta Prasad01

    लेकिन तुम गिरे नहीं

    तुम… गिरे नहीं!

    तुम्हे अब भी लगता है

    बहार में वो शक्ति है

    जिसे प्यार कहते हैं

    प्यार कर सकता है वो

    जिसे उद्धार कहते हैं

    Lalitji aapki lekhni main bhavoon ko prathak-prathak darshane ki shamta hai, aap kaafi saare baav ( peeda/prem/intazaar/dharya/asha/prakriti-prem/sanskaar aur manavta aadi) ek hi kavita main samjha sakte hain. Aachi Kavita hai!

  2. LALIT BHAI , MUJHE LAGTA HAI KI AAPNE KUCH SHABDON
    KO SAHI JAGHA PAR NAHI RAKHA HAI , ACHANAK HI KAL PARIVARTIT HO JATA HAI IS SE EKRASTA KA AABHAV PAIDA HOTA HAI ……..JARA GOUR KAREN ….JAISE

    बहार तुम पर कभी नहीं छाएगी
    यूं ही वह दूर से गुज़र जाएगी
    बस आशा बची है तुममे
    वरना झरी हुई हर पाती है

    JULEE

  3. प्यार कर सकता है वो

    जिसे उद्धार कहते हैं

    sach bandgi hi prem ka paryay hai aur shraddha to aghatit karya siddh karti hi hai…

    shrinkhla mein kadiyan judti jayen!!!

    shubhkamnayen!!!

  4. Manjeet bhawaria

    me aapke pas meri hindi and haryanvi poem bhejna chahta hu or me ye sochta hu ki meri poem bhi es computer par internate par bhi dhikhai de

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