ललित कुमार द्वारा लिखित, 16 मार्च 2006
हर तारे का एक तारा साथी
गिन-गिन देखे हमनें तारे
पूरब से पश्चिम तक सारे
मिला नहीं पर कोई ऐसा
हो न जिसका एक तारा साथी
हर तारे का एक तारा साथी
आँख-मिचौली का यह खेल
बस बहुत हुआ अब कर लो मेल
तुमसे हार मुझे लाज नहीं है
मिल जाओ अब मैं हारा साथी
हर तारे का एक तारा साथी
मधुऋतु अपने रंग ओढ ले
नाता मेघ सावन से जोड़ लें
पहुँचु जो उस धरती पर मैं
मिले जहाँ वो प्यारा साथी
हर तारे का एक तारा साथी
प्यारी सी रचना!
न जाने तारों के मिस कौन निमंत्रण देता मुझ को मौन ..
khoobsurat kavita
मधुऋतु अपने रंग ओढ ले
नाता मेघ सावन से जोड़ लें
पहुँचु जो उस धरती पर मैं
मिले जहाँ वो प्यारा साथी………
बेहद खखूबसीरत पंक्तियां…..
बेसब्री से इन्तजार में…………
अगली रचना का
bahut pyari kavita h…..:)
“न जाने नक्षत्रों से कौन
निमंत्रण देता मुझको मौन …”
“न जाने, सौरभ के मिस कौन
संदेशा मुझे भेजता मौन !”
Bahut khoobsurat rachana