ललित कुमार द्वारा लिखित; 25 अप्रैल 2006
एक छोटी-सी कविता…
मेरे गीतों की गलियों में
दर्द बहता है
तभी तो इनमें
समय के घुमाव हैं
और आँसूओं की लहरें
टूटे सपनों का जमाव है
और वेदना के गर्त गहरे
तूफ़ानो की हरहराहट है
और नियति के आघात
अधूरी रह गयी चाहत है
और कह ना सका वो बात
मन पीड़ा की धारा में
हिल्लोर हज़ार सहता है
तभी तो
मेरे गीतों की गलियों में
दर्द बहता है
aapki ek kavita ''seedhe palle me atak gaya mera dil ''mujhe bahut achchhi lagi
beautiful
Mann ki pidaa , dard ka geet … Yahi vyatha hoti hai dard bas behta hai…
Sunder rachna lalit ji
ललित जी सुन्दर रचना निम्न बहुत प्यारा लगा
टूटे सपनों का जमाव हैऔर वेदना के गर्त गहरे
बधाई हो
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
Hai sabse madhur wo geet jisay hum dard ke sur me gaate hain..!! isliye apki rachna bhi sunder aur madhur hai!