ज़िन्दगी एक बारकोड है
ललित कुमार द्वारा लिखित; 26 जुलाई 2011 एक नई रचना; जिसमे मैंने जीवन और बारकोड के बीच समानता बयां की […]
ललित कुमार द्वारा लिखित; 26 जुलाई 2011 एक नई रचना; जिसमे मैंने जीवन और बारकोड के बीच समानता बयां की […]
ललित कुमार द्वारा लिखित; 28 जनवरी 2007 एक पुरानी रचना… ज़िन्दगी मेरे साथ-साथ चलना सुनो ज़िन्दगी, मेरे साथ-साथ चलना अब
ललित कुमार द्वारा लिखित; 12 जनवरी 2010 देखो, ज़िद ना करो मुझे बिखर जाने दोइतनी दरारें पड़ चुकी हैं मुझे
ललित कुमार द्वारा लिखित; 25 अप्रैल 2006 एक छोटी-सी कविता… मेरे गीतों की गलियों में दर्द बहता है तभी तो
ललित कुमार द्वारा लिखित आज मेरा मन उदास है किससे कहूँ? नहीं कोई आस-पास है किससे कहूँ? इस सूनेपन को
ललित कुमार द्वारा लिखित; 22 अप्रैल 2011 को सायं 6:00 कुछ दिन पहले मैं प्रकृति के बीचो-बीच पहुँचा था… वही
ललित कुमार द्वारा लिखित; 26 मार्च 2011 को सायं 8:00 जीवन ऐसा भी होता है… हाँ, मैं एक बुनकर हूँ
ललित कुमार द्वारा लिखित; 28 फ़रवरी 2011 आज एक नई कविता लिखी… मैं उजला ललित उजाला हूँ! मैं हूँ तो
ललित कुमार द्वारा लिखित; 12 दिसम्बर 2008 को 1:00pm काफ़ी दिन के बाद… एक ख़्याल की तरह तुम हो भी
ललित कुमार द्वारा लिखित आप सभी को नव-वर्ष की हार्दिक बधाई! करता हूँ विनय अखिलेश्वर से खुशी आपकी चाहता सर्वेश्वर
ललित कुमार द्वारा लिखित; 27 दिसम्बर 2004 हर वर्ष के आखिर में मुझे इस कविता की याद ज़रूर आती है…
ललित कुमार द्वारा लिखित; 26 नवम्बर 2010 निरंतर जारी “ओ पेड़” शृंखला की नवीनतम कड़ी… ओ पेड़ वो तो अमर
ललित कुमार द्वारा लिखित; 07 अप्रैल 2005 आकाश असीमित हो तो हो नन्हा-सा, पर अपना हो जो उस नीड़ के
ललित कुमार द्वारा लिखित कल रात जब मेरी तुमसे बात हुई कहो सितारों, क्या तुमने मेरी वाणी में कम्पन पाया?
ललित कुमार द्वारा लिखित; 6 जनवरी 2005 तुम [tippy title=”क्षितिज”]जहाँ धरती और आकाश मिलते हैं[/tippy] बनो तो बनो मैं तो
ललित कुमार द्वारा लिखित; 19 अक्तुबर 2005 दीपावली पर हर कोई चाहता है कि वह अपने प्रिय व्यक्तियों के करीब
ललित कुमार द्वारा लिखित “ओ पेड़” नामक शृंखला जारी है। एक और कड़ी प्रस्तुत है… ओ पेड़ तुम्हारे हौंसले को
ललित कुमार द्वारा लिखित; 23 जनवरी 2009 “ओ पेड़” नामक शृंखला जारी है। एक और कड़ी प्रस्तुत है… ओ पेड़
ललित कुमार द्वारा लिखित; 11 अक्तूबर 2010 यह एक पंछी की दास्तान है जिसे कमज़ोर समझकर दुनिया ने ठुकरा दिया।
ललित कुमार द्वारा लिखित; 26 जुलाई 2004 प्रत्येक प्रयत्न सफल होता है आज नहीं तो कल होता है आज राह
ललित कुमार द्वारा लिखित; 12 जुलाई 2007 ये अंगूठी वापस नहीं लौटी हक़ीक़त बनने की सीमा तक जाकर एक सपना