गंतव्य
ललित कुमार द्वारा लिखित; 03 जनवरी 2004 गंतव्य दूर नहीं दिखता पथिक हूँ पा ही जाँऊगा थक कर चूर हूँ […]
ललित कुमार द्वारा लिखित; 03 जनवरी 2004 गंतव्य दूर नहीं दिखता पथिक हूँ पा ही जाँऊगा थक कर चूर हूँ […]
ललित कुमार द्वारा लिखित; 12 सितम्बर 2010 ग़ज़लों के सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए एक और ग़ज़ल पेशे-नज़र है। यह
ललित कुमार द्वारा लिखित; 26 अगस्त 2009 काफ़ी सारी कविताएँ पेश करने के बाद आज मैं एक ग़ज़ल-नुमा-कविता (ग़नुक) पेश
ललित कुमार द्वारा लिखित; वर्ष 2003 किसी बच्चे से पूछो ज़रा ज़ोर से तुम्हारे हाथ में क्या है? तुम देख
ललित कुमार द्वारा लिखित; 27 जुलाई 2010 क्या आप विश्चास करेंगे? पॉलीथीन की पन्नियाँ बीनने वाली उस फटेहाल स्त्री को
ललित कुमार द्वारा लिखित; 01 अक्तुबर 2003 यह रचना मैनें आज से सात वर्ष पूर्व जन्माष्टमी के दिन ही लिखी
ललित कुमार द्वारा लिखित; 03 अप्रैल 2005 को रात्रि 11:00 यह रचना मैनें अपनी एक मित्र (जिसका नाम परी था)
ललित कुमार द्वारा लिखित; 28 फ़रवरी 2008 एक और कल्पना… तुम कल्पना साकार लगती हो नभ का धरा को प्यार
ललित कुमार द्वारा लिखित, 10 दिसम्बर जून 2005 कुछ आखिरी किरणें बची हैं, उनको लुटा रहा हूँ मैं सारा दिन
ललित कुमार द्वारा लिखित, 17 जुलाई 2005 निज भविष्य की अंतिम सीमा पर सोचूंगा खड़ा स्वयं को पाकर कि तुम
ललित कुमार द्वारा लिखित, 01 अगस्त 2010 आखिरकार एक नई रचना लिखी गई है। जीवन-दर्शन पर अधारित यह कविता हिम
ललित कुमार द्वारा लिखित, 18 दिसम्बर 2004 एक और आशा; एक और प्रश्न… कर तुम्हारा पाने को जाने क्या करना
ललित कुमार द्वारा लिखित, 26 अगस्त 2005 यह कविता मैनें आधी रात के करीब बिस्तर पर पड़े सोने की कोशिश
ललित कुमार द्वारा लिखित, 10 अगस्त 2004 आज दिल्ली में तेज़ बारिश हुई। यूं लग रहा था जैसे कि वर्षा
ललित कुमार द्वारा लिखित, 14 नवम्बर 2004 यह कविता आशा और निराशा के बीच झूलते एक मन की प्रतिध्वनी है।
ललित कुमार द्वारा लिखित, 20 अक्तूबर 2003 मरूस्थल दुख और सूनेपन की परिभाषा है। कुछ मरुथल भावनात्मक भी होते हैं
ललित कुमार द्वारा लिखित, 16 अगस्त 2003 सावन के महीने में काले मेघ मन को जितने सुंदर लगते हैं उतना
ललित कुमार द्वारा लिखित, वर्ष 2002 यह कई वर्ष पुरानी कविता है। साधारण-सी रचना है… काफ़ी हद तक वैसी जैसी
ललित कुमार द्वारा लिखित, 03 जून 2004 सभी की तरह मुझे भी तलाश है। किसकी?… क्या किसी को भी इसका
ललित कुमार द्वारा लिखित, 01 फ़रवरी 2007 यह कविता मेरी कल्पित कल्पना का वर्णन है। इसमें वर्णन है एक पावन
ललित कुमार द्वारा लिखित, 08 अक्तुबर 2006 को प्रात: 6:00 सितम्बर 2006 के आखिर में मैं पढ़ाई के लिये एडिनबर्ग