ललित कुमार द्वारा लिखित; 22 जुलाई 2006 सायं 6:00
जुलाई 2006 में जब मैं कविता कोश वेबसाइट की रचना कर रहा था -उस समय की लिखी हुई एक रचना…
हैरान हूँ मैं दर पे नामाबर को पा कर
आता नहीं यकीं के ख़त मेरे नाम है!
जिस्म को झुकाना तो बस रवायत है
रूह झुके सजदे में तभी सच्चा सलाम है
अर्सा हुआ मुझको मरते हुए ऐ ज़िन्दगी
अब आई हो कहो, मुझसे कोई काम है
हमसफ़र-ओ-ताक़त नहीं हौंसला-ओ-चाहत
क्यों बिछी मेरे आगे ये राहें तमाम हैं
उनकी आँखो से कहीं आँसू ना छलक पड़ें
उनको मत सुनाना, ललित का कलाम है
जिस्म को झुकाना तो बस रवायत है
रूह झुके सजदे में तभी सच्चा सलाम है… आरम्भ सज़दे में , इस भाव के सज़दे में मैं …
अर्सा हुआ मुझको मरते हुए ऐ ज़िन्दगी
अब आई हो कहो, मुझसे कोई काम हैइसकी तारीफ में मेरे सारे शबाद कम पर जाएँगे……
अर्सा हुआ मुझको मरते हुए ऐ ज़िन्दगी
अब आई हो कहो, मुझसे कोई काम है
काम तो है, ज़िन्दगी को ललित से ज़रा सी ज़िन्दादिली चाहिए….!
dil ko chhu gaya
अर्सा हुआ मुझको मरते हुए ऐ ज़िन्दगी
अब आई हो कहो, मुझसे कोई काम है….
बहुत खूबसूरत गजल …
gud one ..:)
cld u pls tell me exact mean of Naamaabar in hindi ?