ललित कुमार द्वारा लिखित; 29 दिसम्बर 2004
एक बहुत पुरानी कविता…
क्या अंतर पड़ जाएगा, क्या कमी हो जाएगी
हम ना होंगे, ये कोयल गीत फिर भी गाएगी
रंगो का आंचल ओढ़े, फूल फिर भी खिला करेंगे
हम ना होंगे, ये तितलियाँ इसी तरह मंडरांएगी
हर सांझ ढले अंबर, तारक मणियों का थाल बनेगा
हम ना होंगे, भोर ऐसे ही किरणें नई फैलाएगी
संसार यूँ ही गतिमान रहेगा, किन्तु लगता है
हम ना होंगे, कीमत प्रेम की तब ही समझी जाएगी
हर बार कि तरह बहुत खूबसूरत रचना |
हर बार कि तरह बहुत खूबसूरत रचना |
अति सुंदर कविता
संसार यूँ ही गतिमान रहेगा, किन्तु लगता हैहम ना होंगे, कीमत प्रेम की तब ही समझी जाएगी …wht a fabulous line
Kyaa Fark Hogaa, Kahaan Kami Hogi..,
Ye Jist Na Hogi, Ye Jamin Vahin Hogi..,
Daaman Range-Paharan, Barahaa Gul Khilenge..,
Ye Jist Na Hogi, Fatingaa Tilasmi Hogi..,
सच में दिन को झकझोर देने वाली कविता…………..हम न होंगे……क्यों?