नहीं चाहिए ऐसा प्यार

ललित कुमार द्वारा लिखित; 31 जनवरी 2012
एक नई कविता…

आदर-सा जो लगता हो
नहीं चाहिए ऐसा प्यार
चाह मुझे तो है उसकी
जो माने मुझ पर निज अधिकार

आदर सिर-माथे तो रखता है
पर सीने नहीं लगाता है
जो प्रेम से सना नहीं हो
ऐसा भाव कहाँ भाता है

बिन गणना बिन कारण के
मेरे हो तुम मैं हुआ तुम्हारा
यही बंधन है सबसे प्यारा
बाकी जो है सब व्यापार

चाह मुझे तो है उसकी
जो माने मुझ पर निज अधिकार

इस चमक-दमक में मत पड़ना
कि जग मुझको सीस नवाता है
सब भूल कर प्यार मुझे देना
कह, क्या तू ऐसा दाता है?
आओ, कर दो मेरे सपन साकार

चाह मुझे तो है उसकी
जो माने मुझ पर निज अधिकार

11 thoughts on “नहीं चाहिए ऐसा प्यार”

  1. चाह मुझे तो है उसकीजो माने मुझ पर निज अधिकार..बहुत ही प्यारी,मधुर सी रचना।

  2. चाह मुझे तो है उसकी
    जो माने मुझ पर निज अधिकार 
    बहुत ख़ूबसूरत !!!!

  3. Akashdeep Ismu2008

    reminded me of d novel oliver’s tale by erich segal………d same thing…
    इस चमक-दमक में मत पड़नाकि जग मुझको सीस नवाता हैसब भूल कर प्यार मुझे देनाकह, क्या तू ऐसा दाता है? 

  4. बहुत सुंदर लिखा है ललित जी …………सच्चे प्रेम की परिभाषा शायद कुछ ऐसी ही होती होगी 

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