ललित कुमार द्वारा लिखित; 04 अगस्त 2011
हालांकि इस ग़नुक को मैंने कई साल पहले लिखा था लेकिन आज इसमें बहुत-से बदलाव करके इसे अंतिम-रूप देने की कोशिश की है…
अब ये वहम दिल में और पल नहीं सकता
ऐ दोस्त मैं कदम मिलाकर चल नहीं सकता
तुम पैरों की धूल मानों तो चलो यूँ ही सही
है मेरी यही तक़दीर इसे बदल नहीं सकता
अंधेरे की शिकायत करो बाती से जहाँ वालों
दिया हूँ मैं बिना बाती के तो जल नहीं सकता
बंजर धरती की तरह राहें उसकी तकता हूँ
बरखा की हलचल बिना हल चल नहीं सकता
दुनिया-ए-रफ़्तार-ए-तेज़ के बारे में क्या कहूँ
ज़िन्दगी दौड़ी जा रही और मैं चल नहीं सकता
तय वक़्त पर बहार चली आती तो है लेकिन
रूठी हुई है वो कोई गुल खिल नहीं सकता
These two couplets are really great –
अंधेरे की शिकायत करो बाती से जहां वालों
दिया हूँ मैं बिना बाती के तो जल नहीं सकता प्रकाश दे अन्धकार मिटाने की गहन लालसा है किन्तु एक अनचाही बेबसी दिल को कचोटती है !
बेहद मर्मस्पर्शी !
दुनिया-ए-रफ़्तार-ए-तेज़ के बारे में क्या कहूँ
ज़िन्दगी दौड़ी जा रही और मैं चल नहीं सकता
असमर्थता, बेबसी, लाचारी के भाव पाठक के मन को व्यथित करते हैं !
आपकी कलम से निकला एक और अत्यंत उज्ज्वल मोती |
These two couplets are really great –
अंधेरे की शिकायत करो बाती से जहां वालों
दिया हूँ मैं बिना बाती के तो जल नहीं सकता प्रकाश दे अन्धकार मिटाने की गहन लालसा है किन्तु एक अनचाही बेबसी दिल को कचोटती है !
बेहद मर्मस्पर्शी !
दुनिया-ए-रफ़्तार-ए-तेज़ के बारे में क्या कहूँ
ज़िन्दगी दौड़ी जा रही और मैं चल नहीं सकता
असमर्थता, बेबसी, लाचारी के भाव पाठक के मन को व्यथित करते हैं !
आपकी कलम से निकला एक और अत्यंत उज्ज्वल मोती |
Lalit Sir, This ia an absolute gem.True for all facets of life. Keep enlighting us with ur talent.
बंजर धरती की तरह राहें उसकी तकता हूँ
बरखा की हलचल बिना हल चल नहीं सकता
dil ke kareeb pata isay…aisa laga ki jaise mere hi man kii baat keh di gayi ho aapne…aur yahi to kavi kii safalta hai!!!
दुनिया-ए-रफ़्तार-ए-तेज़ के बारे में क्या कहूँ
ज़िन्दगी दौड़ी जा रही और मैं चल नहीं सकता
speechless..just oooosummm…
good
ललित जी इतनी उत्तम रचना के लिए कोटिशः साधुवाद
kabhi achhi kavita hai
अब ये वहम दिल में और पल नहीं सकता
ऐ दोस्त मैं कदम मिलाकर चल नहीं सकता
Ji ha kyunki..
Jo manjil teri hai wo mera ho nahi sakta
हथेलियों पर उनका नाम जब लिखती हैं उंगलियां
जमाने की चारों तरफ उठती हैं उंगलियां।
बड़े मुद्दतों के बाद आया उनका हाथ मेरे हाथों में
आज भी उन हसीन लम्हों को याद करती हैं उंगलियां।