ललित कुमार द्वारा लिखित; 26 जुलाई 2011
एक नई रचना; जिसमे मैंने जीवन और बारकोड के बीच समानता बयां की है। बारकोड खड़ी काली-सफ़ेद पट्टियों से बना होता है और आपने इसे पुस्तकों के अलावा और अनेकों उत्पादों पर लगा देखा होगा। बारकोड में उत्पाद के बारे में जानकारी छुपी होती है जिसे कम्प्यूटर पढ़ सकता है।
ज़िन्दगी एक बारकोड हैदिखती सबको है
जीते भी सब हैं
समझना सब चाहते हैं
पर जो सामने है
वो सच नहीं है
और जो सच है
वो नज़र नहीं आता!
जो दिखता है
वो अर्थहीन है
जो महत्तवपूर्ण है
वो खुद को है हमसे छिपाता!
कभी दुख की छाया जैसी
काली पट्टियाँ घेर लेती हैं
तो कभी सुख की धूप
सफ़ेद पट्टियों का रूप लेती है
कुछ पट्टियाँ पतली हैं
तो अनेकों काफ़ी मोटी हैं
इसीलिए सुख-दुख की अविधि
कहीं लम्बी कहीं छोटी है
ज्ञानीजन बतला गए हैं
जीवन तो एक क़ैद है
कारागार है, एक पिंजरा है
बारकोड को ध्यान से देखो
सलाखें दिखती हैं जैसे यह
अपनी ही क़ैद का कमरा है
जीवन की तरह ही बारकोड भी
इक छोर से शुरु होता है
काली-सफ़ेद पट्टियों के बीच
गुज़रता हुआ हरेक इंसान
कभी हंसता है कभी रोता है
बस यूं ही आगे बढ़ते हुए
बारकोड समाप्त हो जाता है
क़ैद भी टूट जाती है
जीवन का अंत हो जाता है
भगवान भी एक बारकोड है
और उसके सारे बंदे भी
ना भगवान समझ में आता है
ना इस संसार के धंधे ही
जीवन भर सुख और दुख का
एक क्रम-सा चलता रहता है
जीवन तो नाम है केवल
सुख-दुख इन रेखाओं का
सीधी बात सी सीधी रेखाएँ
इनमें नहीं कोई मोड़ है
तभी तो अक्सर लगता है कि
ज़िन्दगी एक बारकोड है
v.good!
Second to none!! Adhbhut!!
भगवान भी बार कोड है – अच्छी कल्पना है;शायद एक तरह से सत्य भी है. मैंने भी एक बार लिखा था कि भगवान 'j' अर्थात -१ का वर्गमूल है – निर्विकार, निराकार.
अच्छा लिखते हो, कर्मठ हो. God bless you.
शक्ति कुमार
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति ललित जी | जिन्दगी को तो हम सभी रोज देखते हैं , जीते
है , काटते हैं ,लेकिन इक नए नजरिये से आपने इसे देखा ये काबिले तारीफ़ है | हम सभी
की जिन्दगी बारकोड है| यहाँ तक तो बात समझ आती है | लेकिन जैसे हर बार कोड को
कंप्यूटर पर पढ़ा जा सकता है| ठीक उसी तरह हमारे बारकोड को खुदा बखूबी समझता है |
इश्वर बारकोड नहीं –वो तो हमारे बारकोड को पढने वाला , बनाने वाला है | उसने ही
तो आपके और मेरे और हम सब के जीवन में काली और सफ़ेद पट्टियाँ चिपका दी हैं | आपके
बारकोड को मैं चाहते हुए भी नहीं पढ़ सकती और आप मेरे बारकोड को कभी नहीं समझ सकते |
कोई किसी के बारकोड को नहीं समझता | हाँ कभी कभी किसी की काली पट्टी {दर्द की }
हमारी स्याही से मेल खा जाती है | तो कभी किसी की सफ़ेद लाइन अपनी सी लगने का आभास
देती है |
लेकिन देखिये ना कितनी मजबूर हैं ये बारकोड की लकीरे जो साथ है पर इक दूजे से
मिलती नहीं | देखने में सब दूर से इक जैसी ही दिखती हैं | लेकिन किसमे क्या क्या
छुपा है |कौन जाने ? किस बारकोड की किन लकीरों में प्रेम के सागर है | किसमे नफरत
के जहर | कौनसी लकीर दर्द से सिमटती है और कौनसी लकीर कितना जलती है | कौन जाने ?
हमारे बारकोड को वो खुदा बखूबी अपनी कंप्यूटर स्क्रीन पर पढता रहता है | और
मुस्काता रहता है | कभी कभी वो लकीरों को बदल भी देता है | काश ..की वो इश्वर ये
समझ पाता की उसके इस गोरख धंधे से ये उसके बन्दे कितने हैरान है , परेशान है |
बहुत सुन्दर प्रस्तुती बधाई आपको |
अत्यंत नवीन कल्पना एवं सटीक उपमा ! प्रत्येक पंक्ति नई बात सामने रखती है तदन्तर उसका स्पष्टीकरण अवं अभिप्राय भी व्यक्त करती है | वास्तव में बारकोड और जीवन में अद्भुत समानता है ! अभिवयक्ति में तर्क और ताज़गी का समन्वय बहुत भाया !
बहुत ही अच्छी कल्पना एवं दर्शन है । बहुत बढिया आपने ऐसे सामान्य से चीज पर बहुत अच्छी बात कह दी है।
thik hai lekin aapke vyaktitwa aur naam ke anuroop nhi .sorry
Res. sir, bahut shaandar rachna hai..aisa bahut kam dekhne ko milta hai ..ki koi technology se zindagi ke mayane koi sanjha jaye..behad khubsurat..god bless u.
jindgi ko kabhi is nazareye se nahi dekha…….amazing thought
कुछ पट्टियाँ पतली हैं
तो अनेकों काफ़ी मोटी हैं
इसीलिए सुख-दुख की अविधि
कहीं लम्बी कहीं छोटी हैso true:)
Bahut hi umda! – Dharni