मैं बीत रहा हूँ प्रतिपल, मेरा जीवन बीत रहा है

ललित कुमार द्वारा लिखित; 30 जून 2011

यह मेरी एक प्रिय कविता है –इसे मैंने कुछ समय पहले लिखा था –लेकिन ठीक तिथि याद नहीं हैं। इसीलिए आज की तिथि लिखी है। आशा है पाठकों को पसंद आएगी।

मैं बीत रहा हूँ प्रतिपल
मेरा जीवन बीत रहा है
पल-पल के रिसते जाने से
जीवन-पात्र रीत रहा है

उसको पाने की ख़ातिर तो
खुद से भी मैं बिछड़ चुका हूँ
मिला नहीं क्यों अब तक मुझको
जो मेरा मनमीत रहा है

पता नहीं खुशी का अंकुर
कब झाँकेगा बाहर इससे
विश्वास का माली बरसों से
मन-भूमि को सींच रहा है

उठे दर्द की तरंगो-सा
गिरे ज्यों आँसू की हो बूँद
मेरे जीवन-वाद्य पर बजता
ये कैसा संगीत रहा है!

विजेता मेरे हृदय की तुम
उल्लास में पर ये ना भूलो
कोई हृदय को हार रहा है
तभी तो कोई जीत रहा है

समझा नहीं पाया तुमसे
कितना प्यार रहा है मुझको
नाम तुम्हारा ही पुकारता
मेरा हर इक गीत रहा है

मैं बीत रहा हूँ प्रतिपल
मेरा जीवन बीत रहा है…

16 thoughts on “मैं बीत रहा हूँ प्रतिपल, मेरा जीवन बीत रहा है”

  1. Abha Khetarpal

    sunder…magar maayusi jhalakti hai…agar wo naa jhalakti hoti to aur bhi khoobsurat hoti….

  2. very nice, loved the lines…
    समझा नहीं पाया तुमसे

    कितना प्यार रहा है मुझको

    नाम तुम्हारा ही पुकारता

    मेरा हर इक गीत रहा है

  3. v niceविजेता मेरे हृदय की तुम
    उल्लास में पर ये ना भूलो
    कोई हृदय को हार रहा है
    तभी तो कोई जीत रहा है

  4. प्रकाश

    //कोई हृदय को हार रहा है
    तभी तो कोई जीत रहा है//अच्छी है !!!!

  5. कोई हृदय को हार रहा है

    तभी तो कोई जीत रहा है
    very true!!!

  6. कोई हृदय को हार रहा है
    तभी तो कोई जीत रहा है

     हृदय के हारने में ही तो सारी खुशियाँ छिपी हैं !
    व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना है कि प्रेम कभी समझाया, कभी जगाया नहीं जा सकता | या तो प्रेम होता है या नहीं होता ! मुझे एक अत्यंत मधुर गीत की पंक्ति याद आ रही है – सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो ………………..

  7. Mahavidyaupadhyay

    jeevan ghat ke reetne ki bechaini bahut khoosurti se evam swabhavik dhang sevyakt hai

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