ललित कुमार द्वारा लिखित; 06 जून 2011
थामोगी या छोड़ोगी मेरा हाथ ज़िन्दगी
कब बीतेगी कहो ये काली रात ज़िन्दगी
मुझसे वादा किया है तूने वो भूलना नही
जिस बाबत हुई थी तेरी-मेरी बात ज़िन्दगी
जन्मों का है जब साथ तो बेकरारी क्यों
अभी तो बाकी हैं पड़ने फेरे सात ज़िन्दगी
आग, कम्बल, छत नहीं, सोये कहाँ ग़रीब
ठंड में कांप रहा है तन का पात ज़िन्दगी
माना के तूफ़ां तेज़ है पर लड़ने तो दे ज़रा
होगी ग़र तो मानेंगे शह-ओ-मात ज़िन्दगी
Very depressing!
अच्छी अभिव्यक्ति है ललित जी………मुझे हमेशा से कविता में लय प्रिय रही हैं….लय हो तो हर भाव स्वीकार हैं, सबसे बड़ी बात अपने मन में उठते भावों की पूरे मन से अभिव्यक्ति करना ही कविता है मेरी नज़र में….. बहुत अच्छी कविता है…..निराशा में आशा की झलक भी है …माना के तूफ़ां तेज़ है पर, लड़ने तो दे ज़राहोगी ग़र तो मानेंगे, शह-ओ-मात ज़िन्दगी
hi…lalit ji ……………………….lagta hai ishwar aapke man ki gagar me bhavo ka sagar bhar diya hai
lalit ji,
saat kyaa mai to aath phere bhii le loongi
बस ठीक है. आपकी पिछली कविताओं के मुकाबले कुछ कमज़ोर है. मुझे आपकी रचनाएँ पसंद हैं,उनमें ईमानदारी है, बनावट नहीं.
nice one i like it
हर बार की तरह बहुत ही खुबसूरत कविता और हमारा विषय जिंदगी , जिसपर हम हमेशा लिखते हैं पढ़कर बहुत अच्छा लगा | सुन्दर भावों को लिए हुए |बेहतरीन रचना |
बहुत खूब ललितजी !!
hi brother,
aap kis tarha apne man ke bhavo ko kavita ki ly me dhall dete hai .so nice of u .aapne jindgi ki sachhai ko bade hi sunder shabdo me dhala hai.i like it.
प्रिय ललित जी, आप निश्चय ही एक संवेदनशील रचनाकार हैं| शुभकामनायें|
-अरुण मिश्र.
आज रविवार को आपका ब्लाग फू़रसत से पढ़ा। आनन्द आया। जानकारी पूर्ण है। मैं लाभान्वित हुआ। ग़जल लेखन पर लेख प्रभावशाली है। मैं नियमों में नहीं बंध पाया परन्तु फिर भी प्रयास कर लेता हू़। आपके लेखों से लाभ हुआ। आभार।
lyk it … describe a bravery against criticle situation of lyf . really nice ..& i m very thankful to u Lalit ji!!!
nice one