ललित कुमार द्वारा लिखित; 12 जनवरी 2010
देखो, ज़िद ना करो
मुझे बिखर जाने दोइतनी दरारें पड़ चुकी हैं
मुझे एक बार तो टूट कर
बिखरना ही होगा
तुम ज़िद ना करो
कि मुझे संवार लोगी
प्यार भरा तुम्हारा
एक लफ़्ज़ भी
अकेलेपन से बंधे
टूटे हुए मन से
सहा ना जाएगा
मारे खुशी के
साज़े-धड़कन ही
थम जाएगा
नहीं, तुम यूं ना
मुझे सहारा देने की बातें करो
मत कहो कि दुख मेरे
तुम्हारे हैं
मुझसे कुछ मत कहो
बस, ज़रा छू दो मुझे
कि मैं टूट जाऊँ
तुम्हारी छुअन
अकेलेपन के बंधन को तोड़ देगी
और मैं आँसूओं की लड़ियों-सा
बिखर जाऊंगा
फिर अगर चाहो तो
समेट लेना
मेरे बिखरे हुए टुकड़ों को
और अपने प्यार से
इन्हें फिर से जोड़ना
मुझे यकीं है
तुम्हारा प्यार
मुझे एक नई ज़िन्दगी देगा
और देगा एक मन
जो टूटा हुआ नहीं होगा
लेकिन, अभी
देखो, तुम ज़िद ना करो…
“We came all this way to explore the moon, and the most important thing is that we discovered the Earth”… This line if pondered upon carefully gives an immense philosophical meaning!!
I wish a day comes when humanity also rises as this beautiful Earthrise!!
Thanks for sharing!
beautiful!
aaj ke be-tartib jivan men,kavita ko kavita sa jina….
lality liye lalitji hi kar sakye hain…..badhai.
waw
लफ्ज नहीं है कि क्या लिखू ?