निस्तब्ध से जीवन में

ललित कुमार द्वारा लिखित;

निस्तब्ध से जीवन में कोई ध्वनी खोजता हूँ
निराशा के घने वन में खुली अवनी खोजता हूँ

पत्थर नहीं पसीजते आखिर पत्थर जो ठहरे
बड़ा नादान हूँ कि दिलों में नमी खोजता हूँ

सुना है कि दिल ही से है पहचान हर किसी की
टुकड़े इतने हुए कि पहचान अपनी खोजता हूँ

बादल भी नहीं छाते प्यासी जीवन-भूमि पर
आ इस पर प्यार बरसाये वो घटा घनी खोजता हूँ

निस्तब्ध से जीवन में कोई ध्वनी खोजता हूँ

12 thoughts on “निस्तब्ध से जीवन में”

  1. Abha Khetarpal

    बादल भी नहीं छाते प्यासी जीवन-भूमि पर

    आ इस पर प्यार बरसाये वो घटा घनी खोजता हूँ..

    aisa laga jaise mere hi dil kii baat likh di ho aapne!

  2. aap ki har kavita main dard  hota hai, aaj har insaan kisse na kisse dard main jee raha

  3. Pant Minakshi91

    बादल भी न आते , किसी मरु भूमि पर ,आके जो बरस जाये , ऐसी घटा खोजता हूँ |

    शब्दों का खुबसूरत तालमेल |
    सुन्दर रचना |बादल भी न आते , किसी मरु भूमि पर ,आके जो बरस जाये , ऐसी घटा खोजता हूँ |शब्दों का खुबसूरत तालमेल |सुन्दर रचना |

  4. बहुत सुंदर रचना है ललित जी,
    निराशा के घने वन में खुली अवनी खोजता हूँ
    नादान हूँ कि दिलों में नमी खोजता हूँ..
    बधाई आपको

  5. Saxena_manjula

    क्यूँ छलक रहीं शब्दों में मन के सागर की लहरें ?
    क्यूँ उमड़ घुमड़ कर अब भी आतीं तूफानी लहरें ?
    मेरे आँगन  के बादल  पानी  मुझ पर बरसाते ,
    मेरी बंजर धरती को पर प्यासा ही कर जाते !

    1982-83

  6. Sushilashivran

    बहुत नादान हूँ दिलों में नमी खोजता हूँ ..ये पंक्ति दिल छू गई ललित जी ! ममस्पर्शी !!

  7. एक एक शब्द बहुत ही करीने से सजा कर बनी है इतनी सुंदर रचना.

  8. Sushilashivran

    आपकी रचनाओं की कसक, तड़प और दर्द सीधा दिल को छूता है और मन ये प्रार्थना करता है कि आपको अपने हिस्से की खुशियाँ, हर्ष, उमंग और उल्लास शीघ्र ही मिले और आपकी खोज को जल्द विराम मिले !

  9. Sushilashivran

    ललितजी आप अधिक ज्ञानी हैं किन्तु मैंने दिलों में नमी पाई है और खुशकिस्मत हूँ कि विरले ही सही किन्तु ऐसे लोगों का स्नेह भी पाया है | आपको भी नमी भरा दिल शीघ्र मिले यही दुआ है !

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