ललित कुमार द्वारा लिखित; 26 मार्च 2011 को सायं 8:00
जीवन ऐसा भी होता है…
हाँ, मैं एक बुनकर हूँ
मुझे मिलते हैं केवल
उलझे, बिखरे, रंगहीन
उदास-से लगते कुछ धागे
खट-खटा-खट की तानों पर
हथकरघे-सा मेरा जीवन
हमेशा चलता रहता है
प्यार मेरा, विश्वास मेरा
धागों में ढलता रहता है
इन हथेलियों की गर्माहट में
एक नर्म वस्त्र पलता रहता है
अपनी कल्पना के सबसे मोहक
रंग-रूप मैं उनको देता हूँ
जीवन के और जीने के
नए ढंग मैं उनको देता हूँ
उदास से लगते उन धागों को
विश्वास का वस्त्र भी मैं देता हूँ
जब वस्त्र पूर्ण हो जाता है
अधिकारी उसका आ जाता है
मेरे बनाए उस सुंदर वस्त्र को
मुझसे दूर कहीं वो ले जाता है
हाथ मेरे भी कांपते हैं
जी तो मेरा भी कटता है
टीस भी मन में उठती है
दिल भी टुकड़ों में बंटता है
पर मैं बोल भी तो नहीं सकता
कि जो रचता है उसकी ही रचना है
वापस मुझे कर दो क्योंकि
रचा मैनें, यह वस्त्र मेरा अपना है
ओ अधिकार जताने वाले!
मेरे प्रश्नों का उत्तर तो दो
क्यों नहीं रखते मुस्कान तुम
उदास धागों के होठों पर?
क्यों नहीं भर देते तुम उनका
अंग-अंग सुंदर रंगों से?
क्यों नहीं उभार सकते तुम
कुछ बेल, फूल, तितलियाँ
धागों के उलझे-से जीवन में?
मैं संवारता हूँ जीवन को
जन्म देता हूँ मैं जग में
सुंदरता को, कोमलता को
पर हूँ तो मैं एक बुनकर ही
मुझे मिलते हैं तो केवल
उलझे, बिखरे, रंगहीन
उदास-से लगते कुछ धागे
मैं बुनकर हूँ, मैं रचता हूँ
मेरी रचना, मेरे पास नहीं
मैं बुनकर हूँ, मैं सहता हूँ
यह सत्य है, आभास नहीं
मैं संवारता हूँ जीवन को
जन्म देता हूँ मैं जग में
सुंदरता को, कोमलता को
पर हूँ तो मैं एक बुनकर ही
मुझे मिलते हैं तो केवल
उलझे, बिखरे, रंगहीन
उदास-से लगते कुछ धागे
gehre bhav, sunder abhivyakti…!!
shabdon aur bhavon ka sundar Taana-Baana!!!
सच है, सौ-फीसदी सच है!
मेरे जीवन के उलझे हुए लेकिन रंगीन धागों को सुलझाने और मुझे बेहतर इंसान बनाने के लिए शुक्रिया ललित… बेहतरीन रचना|
नमन|
i dont have words to express my feelings..this is beautiful. I want to me you. Is it possible?
Anu
वैसे गौर से देखा जाये तो हर इन्सान एक बुनकर ही है जो जिंदगी के उलझे हुए रिश्तों को खूबसूरती से सुलाझते हुए उनमें हसीं रंग भरने की कोशिश में लगा हुआ है और अपने आप को साबित कर रहा है | जिंदगी को बुनकर का नाम देकर परिभाषित करती खुबसूरत रचना |
वैसे गौर से देखा जाये तो हर इन्सान एक बुनकर ही है जो जिंदगी के उलझे हुए रिश्तों को खूबसूरती से सुलाझते हुए उनमें हसीं रंग भरने की कोशिश में लगा हुआ है और अपने आप को साबित कर रहा है | जिंदगी को बुनकर का नाम देकर परिभाषित करती खुबसूरत रचना |
Jeevan aur Bunkar ki ye parikalpana bahut khubsurat hai….jeevan aur jine ka dhang..vhishwas ka vastr bhut sunder rachana ..Badhai deti hun aapko
अपनी कल्पना के सबसे मोहक
रंग-रूप मैं उसको देता हूँ
जीवन के और जीने के
नए ढंग मैं उसको देता हूँ
उदास से लगते उन धागों को
विश्वास का वस्त्र मैं देता हूँ
जीवन तो है ताना -बाना
जिसने बुना उसने ही जाना
मर्म यही है जग का बंधू
जीवन है आना और जाना !
bahut achi kavita likhi hai lalit ji…… isko padhke nirala ji ki 'wah todti pathar' ki yad aa gayi…… bahut khub…
superb ! Aapne bahot hi achhe tarike se sare rang pesh kiye hai ! dhyanvad.