आपके सीधे पल्ले में ये दिल अटक गया

ललित कुमार द्वारा लिखित; 02 नवम्बर 2010

इस ग़नुक (ग़ज़ल-नुमा-कविता) का मिसरा “आपके सीधे पल्ले में ये दिल अटक गया” मेरी एक मित्र ने मुझे दिया था… मिसरा मुझे बहुत पसंद आया और इसी पर एक ग़नुक बांधने की कोशिश की है।

लौटेगा कैसे राह पे जो रस्ता भटक गया
आपके सीधे पल्ले में ये दिल अटक गया

रात ज़ुल्फ़, तारों जड़ी साड़ी है चांदनी की
कानों से चांद हो के झुमका लटक गया

ना इन खुशबुओं से लाना बाहर मुझे कभी
हाय वो दिलनशीं के दुपट्टा झटक गया

काश के वो उम्र भर यूं ही रहे मासूम
नाज़ो-अदा से रूठ कर वो पाँव पटक गया

बेहिजाब हुस्न ने की हैं हलचलें तमाम
जिसने भी देखा राह में वो ही अटक गया

14 thoughts on “आपके सीधे पल्ले में ये दिल अटक गया”

  1. काश के वो उम्र भर यूं ही रहे मासूम
    नाज़ो-अदा से रूठ कर वो पांव पटक गया
    beautiful!

  2. wow…………..its great lalit ji,ye to mai janti hoon ki aap kavitai aachi likhte hai,kintu itni sunder shairi bi aap krte hai ye abi jaana hai kya kafiyat h is shairi ki.

  3. bahut acche, ek misre ko lekar itni pyari kavita har koi nahi bana sakta. Wah re kavi 'dilkhush' kya baat hai

  4. This is a very different Lalit i am seeing today …:)

    I think this is a very different poem of yours apart from some of them i read but its nice

  5. in totality all your poems are beautiful pure and innocent.but this one i liked most ganuk actually all the elements of a ghazal are there urdu words used are very appropriate.

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