अब मैंने पर खोल लिए हैं!

ललित कुमार द्वारा लिखित; 11 अक्तूबर 2010

यह एक पंछी की दास्तान है जिसे कमज़ोर समझकर दुनिया ने ठुकरा दिया। पंछी धूल मिट्टी में अटा घायल पड़ा हुआ था। किसी की नज़र धूल के उस आवरण को भेदकर उसके उजले व्यक्तित्व और मानस को नहीं देख पाई। अगर कोई पास आया भी तो पंछी को तुच्छ समझ छोड़कर आगे बढ़ गया। पंछी पड़ा रहा कि कोई तो आएगा जो उसे हाथों में उठा लेगा -उसके ऊपर पड़ी धूल हटाएगा -उसे संवारेगा और नया विश्वास देगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। फिर एक दिन पंछी ने खुद ही उड़ने की ज़िद ठान ली…

पड़ा हुआ था धूल-धूसरित
पैरों से रौंदा जाता था
सांस गई कि बाकि है
ना देखने कोई भी आता था

लिए उम्मीद पड़ा रहा मैं
आकर कोई सहारा देगा
हटा के धूल निखारेगा
कोई हाथ मुझे प्यारा देगा

दिवस माह वर्ष बीत गए
अंतिम-से पल आ पँहुचे
सहारा किसी ने दिया नहीं
हाँ, खुद शीर्ष तक जा पँहुचे

उन्हीं पलों में जो अंतिम-से थे
मैनें जीना ठान लिया
देखना अब परवाज़ मेरी
निज-शक्ति को पहचान लिया

सारा जहां मेरा होगा अब
संग मेरे जग गाएगा
हर छोटा-सा कण भी मेरे
साथ शिखर तक जाएगा

प्यार दो या नफ़रत मुझे दो
मेरे मन में भेद नहीं है
किसने दिया था क्या मुझे
इसका मुझको खेद नहीं है

प्रकृति से टूटे पंख मिले है
तो पीर जगत से पाई है
जग से जो पाया सो पाया
उड़ने की चाह स्वयं जगाई है

घायल पंख हिलने लगे हैं
तूफ़ान उठेंगे अब इनसे
पर प्यार ही मेरी भाषा है
ज्यों रात अलग होती दिन से

लिए इरादे लोहे से
ओस से मैनें बोल लिए हैं
अब मैंने पर खोल लिए हैं!

19 thoughts on “अब मैंने पर खोल लिए हैं!”

  1. पर खोल लिए हैं पंछी ने

    अब उड़ान भरने का वक़्त हो चला है!

    सारी पीर है दग्ध हृदय में

    वाणी मुग्ध औ' हौंसला सख्त हो चला है!

    पंछी के दास्ताँ की सुन्दर अभिव्यक्ति…………. !

  2. लिए इरादे लोहे से
    ओस से मैनें बोल लिए हैं
    अब मैंने पर खोल लिए हैं!

    ati sunder!

  3. गुरु , तुम जो भी हो ,

    हम तुम्हे जान गए ,अन्दर थी जो दिल की आवाज

    उसे हम पहचान गए…….

    तुमने बतलाया हमे जीने का तरीका , विकट समय में उठने का सलीका

    शब्द नही है,

    पर शायद तुम तक, दिल के ये बयान गए ,
    गुरु हम तुम्हे मान गए ,गुरु हम तुम्हे मान गए ,………………………….जूली

  4. Sanjay kumar Asthana

    प्रकृति से टूटे पंख मिले है
    तो पीर जगत से पाई है
    जग से जो पाया सो पाया
    उड़ने की चाह स्वयं जगाई है

    Pathetic, encouraging & inspiring …. very nice.

  5. प्रकृति से टूटे पंख मिले है
    तो पीर जगत से पाई है
    जग से जो पाया सो पाया
    उड़ने की चाह स्वयं जगाई है

    Pathetic, encouraging & inspiring …. very nice.

  6. Wow…wow..wow Lalitji,

    Kamal ki kavita hai. Bahut bahut bahuthi Sabalta, prem, vishwaas, hausale ki parichayak hai.

    Is Kavita main Gautam Buddh ke dikaye rastoon ki jalak milti hai.

    प्यार दो या नफ़रत मुझे दो

    मेरे मन में भेद नहीं है

    किसने दिया था क्या मुझे

    इसका मुझको खेद नहीं है

    Apne sach main na sirf safalta balki Zindagi ke mayanoon ke shikhar ko choo liya hai!

    Apki abtak ki Sabse zayada Inspirational Kavita hai. ( I like this the most)!

    Ek guzarish hai………aage bhi hume eyse hi protsahahit aur zindagi se pyaar karne wali kavitaaon ki bhaint dete rahiyega :]

  7. The picture gives goose pimples!! and the write up makes me shiver to think what all might have happened at that time!!

  8. Good piece of information!

    I really admire the exercise of bringing out the proofs. Actually it would have been impossible for that tourist to ignore the noise (if he belongs to our species coz the audible range of Human beings is 20Hz to 20,000Hz) created by an aircraft in such a dense air with the velocity of 542 mph at that altitude.

    So……Good job done Boss!

  9. kitni hi baar harkisi ke jeevan me aise kshan aa jaate hain

    haar ke himmat baith gaye to maran nahi to avnati nishchit hai

    pankh samet ke ud chal panchi manzil tujhe pukar rahi hai

    kamzor sahi aahat bhi hai tu par phir bhi ek koshish ka kar le housla

    ho sakta haitu pahuch sakega apne abhisht ko

  10. Saxena_manjula

    आत्मा का मुक्त पंछी फिर किलोरें भर रहा है, काट कर हर पाश को ,फिर उड़ रहा है !
    जाल माया के बिछाए प्रेमियों ने और नोचे पंख कोमल भावना के 
    छत पता आहत सा पंछी रो रहा था ,वेदना की वादियों में खो रहा था 
    पर सुरीली  तान ने उसको छुआ ज्यों ,भूल उर की वेदना फिर उड़ चला वह .
    व्योम से उतरे नए सन्देश लेकर चहकते हंसते अनेकों  मोरनी और मोर 
    ले चले उसको अनोखे आसमान की और!
    वे फुदकते, उमगते थे ताल भर कर , नाचते -गाते स्वरों में राग  भर कर !
    जग है एक सपना भुला दो मीत मेरे उड़ चलो उड़ते चलो संग  मीत मेरे !

  11. Saxena_manjula

    kutil vyuuhon ,vyangbaanon ke lagen jab dunk ,chetana ke vihag ne tab hi ugaaye pankh..

  12. सहारा किसी ने दिया नहीं हाँ, खुद शीर्ष तक जा पँहुचे
    जीवन के इस कड़वे सच को कहना ,हर किसी के बस में नहीं.
    आपकी इस कविता में अपने ही जीवन की सच्चाई दिखाई देती है , अपने ही मन के भाव महसूस होते हैं |

    सारा जहां मेरा होगा अब, संग मेरे जग गाएगा
    हर छोटा-सा कण भी मेरे,साथ शिखर तक जाएगा

    लिए इरादे लोहे से,ओस से मैनें बोल लिए हैं,अब मैंने पर खोल लिए हैं!
    इन पंक्तियों में अब जीवन में आगे बढने के इरादे ,जिन्हें अब कोई नहीं बदल सकता |

  13. behad khubsurat kavita hai….. finally apni himmat hi kam aati hai life me ……. ye ek sachai hai……. aur isko apne bahut ache dhang se kaha hai is kavita ke jariye……. thanks……

  14. Hats off to  you Lalit. I am spell bound by your writings and your analytical skills. I really like all your articles.

  15. Mein ek baat kehna chahta hmm aapse. Jaise upar ki kavita mein aapne likha hei:
    udne ki chah swaim jagayee hei
    kuch isi disha mein aur likhiye.

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