ललित कुमार द्वारा लिखित; 26 जुलाई 2004
प्रत्येक प्रयत्न सफल होता है
आज नहीं तो कल होता है
आज राह तेरी मरूथल से जाती
चलता जा कल उपवन भी होगा
आगे जब तू बढ़ना चाहे
शिखर कौन फिर राह में आए?
हो स्थिरचित्त जो चलते हैं
उनके पांव तले शिखर होता है
प्रत्येक प्रयत्न सफल होता है
आज नहीं तो कल होता है
हताश मन को तू होने ना दे
बैठ किनारे स्वयं को रोने ना दे
यह धारा निरन्तर चलती जाती
तभी अंत में सागर बन पाती
इसका मार्ग स्वत: बनता है
धारा-कर्म मात्र चलना होता है
प्रत्येक प्रयत्न सफल होता है
आज नहीं तो कल होता है
बीती पराजय इतिहास बन गई
आँखे खोल, देख यह सुबह नई
दृढ़ निश्चयी हो, कर लक्ष्य साधना
यही है तेरी जीवन आराधना
सर्व लक्ष्य वह भेदन करता है
ध्यान में जो अजुर्न होता है
प्रत्येक प्रयत्न सफल होता है
आज नहीं तो कल होता है
ye image bahut pyari hai …..poem bhi achchi hai
हताश मन को तू होने ना दे
बैठ किनारे स्वयं को रोने ना दे
यह धारा निरन्तर चलती जाती
तभी अंत में सागर बन पाती
इसका मार्ग स्वत: बनता है
धारा-कर्म मात्र चलना होता है…..
apki rachna prerna ka srot hai….behad sunder….
chitra aur rachna dono poorak se lagte hain ek dooje ke…
हो स्थिरचित्त जो चलते हैं
उनके पांव तले शिखर होता है
वाह !!!
आपके व्यक्तित्व की तरह ही प्रेरक… सुन्दर… ओजपूर्ण…. रचना !
शुभकामनायें….
“प्रत्येक प्रयत्न सफल होता है
आज नही तो कल होता है…”
बहुत बडा प्रोत्साहित भावना-हतास-उदास-निरास मन के लिए।
bahut achee kavitaa hai shakti bhee hai si kavitaa men vishwaas bhee sab kuch achhaa hai par kavy kee drishti se ped walee sharankhlaa kaa jawab nahee hai…wo kavitayen kamal kee hain
is kavita se aage badne ki prenna mili hein
It is a fantastic poem. I am very much inspired with this.
It is a fantastic poem. I am very much inspired with this.