ललित कुमार द्वारा लिखित, 14 नवम्बर 2004
यह कविता आशा और निराशा के बीच झूलते एक मन की प्रतिध्वनी है। निराशा निष्फल होती प्रतीक्षा से उपजती है और आशा विश्वास से जन्म लेती है। यह दोनो ही अनुभूतियाँ बड़ी शक्तिशाली हैं; कोई किसी से पराजय स्वीकार करने को तैयार नहीं। इनके बीच मन पिसता रहता है। प्रतीक्षा समाप्त हो जाए तो भला इससे अच्छा और क्या होगा! यदि विश्वास टूट जाए तो भी मन स्वयं को किसी तरह समझा ही ले और ना समझा पाए तो मन ही समाप्त हो जाए! लेकिन ना आशा पूरी होती है और ना ही निराशा पीछा छोड़ती है। इन्हीं भावों को समेटे यह रचना इस संसार में आई है…
मैं अकेला मेरा मन अकेला
यह शाम अकेली यह वृक्ष अकेला
इस एकांत वृक्ष के नीचे बैठ मैं
प्रतिदिन की भांति ढलते सूरज को
निराश भाव से देख रहा हूँ
एक और दिन बीत गया है किन्तु
तुम नहीं आयी, तुम नहीं आयी
निराशा से भरा हुआ
हृदय कुछ भारी-भारी सा है
आती जाती थकी हुई-सी
सांसे हैं बोझल-बोझल
रूंधा हुआ असहाय कंठ
करूण स्वर में तुम्हे बुलाता है
पुकार का किन्तु उत्तर नहीं आता है
हताश मन चाहे कि मैं
उड़ कर पास तुम्हारे जांऊ
गले तुम्हारे लग कर मैं
सारा प्रेम नैनों से बरसाऊँ
भर दूँ तुम्हारा आंचल
इन अटल अनुराग के मोतियों से
प्रतीक्षा की सीप ने जिन्हें
रचा है वर्षों के कष्टों से
इन्ही मोतियों को पाकर कदाचित
तुम आंक पाओगी मेरे प्रेम के मोल को
सहसा यूँ लगता है कि तुमने
मेरे हाथों को छुआ अभी-अभी
मैं चौंक विचारों से निकलता हूँ
तुम्हारे स्पर्श की कल्पित अनुभूति से ही
मुखमंडल आभावान हो उठा
इस एकांत वृक्ष के पत्तो से
कोयल की मीठी कूक सुनाई दी
ढलते सूरज में भी आशा किरन दिखाई दी
बिना तुम्हारे दिन बीत रहे पर
जो प्यार मैं तुम्हे दे नहीं पाता
प्रतिदिन वो बढ़ कर दूना हो जाता
हर क्षण प्रतीक्षा मुझे तुम्हारी
अगले ही क्षण तुम आओगी यही सोच कर
बीत रहीं हैं घड़ियां सारी
तुम पर है मुझे विश्वास अकूत
विश्वास प्रेम की आधारशिला है
मुझे विश्वास तभी तो मेरा प्रेम अटूट
दिन समाप्त हुआ नहीं जीवन की घड़ियां
अभी मैं हूँ और साथ मेरे एकाकीपन
यह एकांत वृक्ष और यह संध्या
सभी को तुम्हारे आने का विश्वास
सूनेपन से बंजर हुई मन की धरती पर
तुम सावन बन कर छाओगी
विश्वास मुझे, तुम आओगी, तुम आओगी
Ab aap rula kar hi maanege lalitji………….
Bahut Khoobsurat chitran kiya hai vedna aur aasha ka, par sabse sundar panktiyaan apki aashwadi bhav ki hain
दिन समाप्त हुआ नहीं जीवन की घडियां
अभी मैं हूँ और साथ मेरे एकाकीपन
यह एकांत वृक्ष और यह संध्या
सभी को तुम्हारे आने का विश्वास
सूनेपन से बंजर हुई मन की धरती पर
तुम सावन बन कर छाओगी
विश्वास मुझे, तुम आओगी, तुम आओगी
Prabhu se yahi kaamna hai isi Saavan main apke prem se apko mila de!
तुम्हारे स्पर्श की कल्पित अनुभूति से ही
मुखमंडल आभावान हो उठा
आशा का चरमोत्कर्ष
कवित की रचना बहुत सुगठित है भावपूर्ण भी
आप बधाई के पात्र हैं
अकेलापन बहुत बुरी चीज़ है …… लेकिन क्या यह अकेलापन ही वस्तुतः हम सबकी सच्चाई नहीं है…?
हम सब अपने अपने अनुभवों के धरातल पर नितांत अकेले ही तो हैं ……
इस सनातन अकेलेपन को रेखांकित करती हुई कविता जीने का हौसला देती है….. उस हौसले को हमारा विनम्र प्रणाम !!!
निश्चित ही कविता को लिखने वाले ने अपनी अनुभूति लिखी है…. लेकिन कविता की आत्मा सार्वभौमिक सच्चाई को दर्शाती है ….
लिखने वाला शर्तिया एक उत्कृष्ट कवि है !
दिन समाप्त हुआ नहीं जीवन की घड़ियां
अभी मैं हूँ और साथ मेरे एकाकीपन
यह एकांत वृक्ष और यह संध्या
सभी को तुम्हारे आने का विश्वास
सूनेपन से बंजर हुई मन की धरती पर
तुम सावन बन कर छाओगी
विश्वास मुझे, तुम आओगी, तुम आओगी
apne priya ke aane ki asha to hamesha bani rehti hai…kab wo ayen aur apni bahon ka sahara de…aur bas yahi intezaar shwaas chalaye rakhta hai…zindagi ke chinh banaye rakhta hai….
aap kavi nahi hain par “apki abhivyakti apki kavita” behad sunder hai!!!
I'm sure you are not the same Lalit when u wrote this sad poem 6 years back in 2004 Despite the last note of optimism, this remains a sad sad sad poem. Well, shravan is back sprays. I hope SHE has either come or comes soon
voh phir aayegi..worry not..
If we will still question Gandhi’s relevance then not only we will be ungrateful to the great man but also we will make our ability to understand humanity questionable.
well said!!!
Do we need any more evidence as to Gandhi’s principles are fundamentally humane and shall always be the need of mankind? Today when more than half of India is under fear of riots -it is Gandhi whose name is being used for the calls of peace, patience and harmony. Today when the nation is in need -we are using Gandhi’s name -tomorrow when the storm would be over -shall we again begin to question his ideals?
You have rightly pointed out in this ‘article’, rather i would say ‘reality thought process’. I do fully agree with you, HUMANITY is needed and will always be needed. We understand only when the ‘Axe’ is hung over our head.
Good One, Keep it up.
Shubhkamnayen!
No Lalit, we should not question Gandhi’s relevance. His Principles and teachings are the roots of our successful country. He won over the hearts of the millions, without ever reigning power over anyone-simply the power of altruism.
We should respect the court’s verdict and should strictly not involve in any untoward incident or act of violence, rather we should mentally prepare ourselves to make the history. This morning only one of my close friends told me….. honestly speaking made me realized that “I can also create history instead of just being the part of history.”
However, no year so far has been riot-free year. The volcano of Communal violence irrupts on smaller scale in different places throughout India. I often feel helpless, when I see the world in turmoil. We should always first get deep into these provoking and opportunist situation/politics. We Know that its not only the communal –riots or religious phenomenon but actually a trap of political dynamics of the respective region.
The diversity of Indian society and the richness of love and peace in our heart cannot sustain communal violence in long term basis. If Communal violence irrupts, it is more because of weakness of secular forces than the strength of the communal forces. Secular parties often loose courage and political will in the face of communal onslaught at certain junctures. If we support the Gandhi’s guidance and just listen our heart’s voice, if we take a pause and think about 5 things in 1st minute/breathe…… like……
• A new born at our home
• Power of love
• Orphans/homeless
• National flag
• Savior (which you can become)
I believe that we too can bring peace to our world by showing our willingness to sacrifice our greed and self-centered desires!!!
Instead of giving long speeches here, I would just like to say that you have a great potential to bring any kind of change…may it be a revolution or an evolution by your writings…!!!
Keep up the good work!!
Questioning Gandhiji and his ideals is absolutely absurd….I don’t think anyone of us has 1/4th or even an ounce of his aura, dedication, selflessness, etc the list is endless. It’s something that nobody has any right to object his values/principles…he was a great saint and we can only be proud of him and respect him for it was him who single handedly & alone molded the freedom of this great nation of ours….Non-Violence and Satyagraha are simple words but very difficult to practice…just try it for a day…offer somebody your other cheek for him to slap you again…it takes even lot more courage to do resist hitting them to retaliate….