ललित कुमार द्वारा लिखित, 16 अगस्त 2003
सावन के महीने में काले मेघ मन को जितने सुंदर लगते हैं उतना ही वे जग सुकून भी पहुँचाते हैं। कुछ हृदय, हालांकि, ऐसे भी होते हैं जिन्हें यह सुंदरता और सुकून पीड़ा ही देती है। और क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उन हृदयों में से एक इन मेघों का भी हो!
जाने कहाँ से ये हैं आते, हृदय को मेरे रौंद मुस्काते
क्षितिज पार ओझल हो जाते, ये सावन के मेघ
जग में उजियारा होने पर भी, मेरे दुख के तम की भांति
श्याम दिनों दिन होते जाते, ये सावन के मेघ
कोई इन से भी बिछड़ गया है, बरस-बरस कर विरह जताते
जल नहीं आँसू बरसाते, ये सावन के मेघ
संदेश प्रेम का जग को दे कर, सबके दिलों का मेल कराते
मन मसोस पर खुद रह जाते, ये सावन के मेघ
सुंदर बदली जो मिली गत वर्ष, नयन उसी को ढूंढे जाते
जीवन उसी को खोज बिताते, ये सावन के मेघ
पा जांए उस प्रियतमा बदली को, यही सोच कर ये हैं छाते
किंतु नहीं निशानी कोई पाते, ये सावन के मेघ
चपला देती भंयकर पीड़ा, उड़ा ले जाती घोर समीरा
लौट वहीं पर फिर से आते, ये सावन के मेघ
Bahut Khoobsurat mail kiya hai aapne, shabdoon aur abhiwayakti ka…..
सुंदर बदली जो मिली गत वर्ष, नयन उसी को ढूंढे जाते
जीवन उसी को खोज बिताते, ये सावन के मेघ
Aasha aur Virahvedna ka adbhut bhaav hai.
चपला देती भंयकर पीड़ा, उड़ा ले जाती घोर समीरा
लौट वहीं पर फिर से आते, ये सावन के मेघ
Pratyeek wayakti k jeevan sangarsh ki gaatha aur use lautkar phir se ladne aur joojhane ki himmat deti hain yeh panktiyaan……..
Regards to the writer!
Lalit ji maja aa gaya…per laga ki ant adhura aur udaseen reha gaya
Mehg ko badli se milane ki koi tarkeeb sujhayi hoti to aur 2-4 stangas aur hote to bahut acha lagta..
:)ye saawan ke megh….
inki vyatha meri vyatha!!
jo hai dharti ka kathya… ambar ki bhi wahi katha!!!
phir kyun mil nahi pate hain…
kshitij par milte-milte woh har roj bichad jate hain….
aapki kavita baras rahi hai …yahaan , kya bhinga… kaun bataye!!!!!!!!!!!!
subhkamnayen…
ये कविता मैने आपकी आवाज में सुनी
जो दर्द कागज पर है वही आवाज में भी
वैसे ये सावन के मेघ अधरों पर एक मधुर-सी मुस्कान भी ले आते हैं
आप इनके साथ मुस्कुरा के तो देखिये
ddddddddddddddddd
very nice . dil ko chone vali