ललित कुमार द्वारा लिखित, 25 अप्रैल 2009
यह रचना बहुत छोटी-सी और साधारण-सी है लेकिन इसकी हर पंक्ति मेरे जीवन का कोई ना कोई पहलू उजागर करती है। हर पंक्ति अपने आप में एक पूरी कहानी कहती है। केवल समझ सकने वाला एक संवेदनशील हृदय चाहिये। यहाँ जिन बैसाखियों की बात हो रही है वे सांकेतिक बैसाखियाँ (metaphoric) नहीं हैं बल्कि मेरी असली बैसाखियाँ हैं जो मेरे जीवन का हिस्सा हैं…
बैसाखियों पे सधी ज़िन्दगी
बैसाखियों से बंधी ज़िन्दगी
बैसाखियों पे चली ज़िन्दगी
बैसाखियों से बनी ज़िन्दगी
बैसाखियों पे खड़ी ज़िन्दगी
बैसाखियों से लड़ी ज़िन्दगी
बैसाखियों से बड़ी ज़िन्दगी!!!
खुश रहो जिंदगी इश्लिये दिया था उपरवाले ने….
बाँट दिया खुशिया जिंदगी की औरो के लिए…
हर पल में जीना था मुश्किल और दुर्लभ…
बना दिया जिंदगी का सीधा रास्ता….
बातें सुनती थी जिंदगी हल घडी…
अब दुनिया को अपने सुनने के काबिल बना दिया ..
जाने क्यों डूबा रहता था हर पल एक सोच में….
क्या मेरी बैशाखी मेरी मुश्किल है??
बना दिया हथियार उसे ही…
हर पल में यही जिंदगी है…
तनहा रहती थी जिंदगी जिन बैशाखियो से….
अब भीड़ से बचना सिखा रही बैसाखी
जिनके सब्द मुझे कोसते थे मेरे हालत पे….
आज तरसा दिया सब्दो ने उनके मुझसे मुलाकात पे..
कैसे भूल जाऊ मै वो बचपन….जब मै तनहा होता था…
साथ नही कोई आया मेरे… पर मेरा लकड़ी का साथी आता था…
अकेले में माँ ने भी खूब रोया….
जाने क्या क्या ख्याल था सबको सताया…
मै नही हू भुला आज भी उन आंसुओ को…
खुशी इतनी है जिंदगी की मेरे आंसुओ ने बैशाखी को मजबूत बनाया…
ललित, तुमने मुझे रुला दिया
बैसाखी की विवशता, अंतस को घायल कर गयी.
बैसाखियों पे सधी जिन्दगी ———————-साधना है साध लो.
बैसाखियों पे बंधी जिन्दगी ———————-कर्म बंधन बाँध लो.
बैसाखियों पे चली जिन्दगी ———————आधार है स्वीकार लो.
बैसाखियों पे बनी जिन्दगी.———————पर्याय है मान लो.
बैसाखियों पे खड़ी जिन्दगी ———————आधार है स्वीकार लो.
बैसाखियों से लड़ी जिन्दगी ——————–संकल्प है आधार लो.
बैसाखियों से बड़ी जिन्दगी ———————चुनौती, मत हार लो.
तुम ललित इतना चले हो, पाँव चल सकते नहीं,
मन की गति को साधते, है कोई समता कहीं?
मानती हूँ दर्द बोझिल, और अब झिलता नहीं,
प्रारब्ध बिन झेले कभी हँसते हुए टलता नहीं.
मृदुल
ममत्व मय शुभाकांक्षी
ye choti ya sadharan rachna nahi hai………. ye apne aap mein asadharan … adwitiya… aur….. atulniye hai……. swayam aapki hi tarah!!!!!!!!!!
jo iswariye prerna evam alaukik shakti aapko kayi logo ke liye prernapunja bana rahi hai…….. ye koi samanya baat nahi hai( for eg… bina nishtha aur adbhut iswariye shakti ke kavita kosh jaise vishal manch ki parikalpana kahaan sambhav hoti……… u r really lucky to hv been bestowed with such vision)!!!!!
subhkamnayen……….
“baisakhiyon se badi jindagi…………..” aapi yeh antim pankti ish rachna ki saarthakta sidha karti hai…….
would like to use it further can I please?
very wonderfully written
An entire book can be written on each phrase ! सधी,बंधी,चली,बनी,खड़ी,लड़ी and ultimately बड़ी ! Every word tells the tale of the struggle, the fight and the undaunted spirit ! Hats off
मैं खुश हूँ मेरे पास बैसाखी है
क्यूंकि..
हर रिश्ता धोखा दे जाता है
हर सहारा छूट जाता है …
मगर ये बैसाखियाँ
ना छोड़ती हैं, ना छूटती हैं
ना असहाय करती हैं …
ना कहती हैं ,,”मुझसे कोई उम्मीद मत रखना !”
अब तो सारी उम्मीदें इसी पर टिकी हैं ….
सच में ये बैसाखियाँ बहुत बड़ी हैं
यह कविता छोटी नहीं गहरी है और इसे समझने के लिए दिमाग से ज्यादा दिल कि ज़रुरत है
सख्त हो गयी हैं हथेलियाँ
दुखते हैं कंधे कभी कभी
इससे अधिक मुझे
अपनी बैसाखियों से शिकवा नहीं
कि मैं ठहर कर पेड नहीं बनता
मैं तालाब नहीं हुआ
मैं नहीं हुआ खंड़हर
न ही अपनी आँखों में आसमान भरे
कोस सका उसको
जिसने थमाई हैं बैसाखियाँ
और नदी बना दिया मुझे
हाँ मैं बहता हूँ
जब मुठ्ठी बंध जाती है है मेरी
अपनी बैसाखियों पर।
बैसखियों पर बड़ी जिंदगी —-अब साखी सी खरी खरी है
जैसे कबीर ने लिखा
कबीरा मन निर्मल भया जैसे गंगा नीर
पाछे पाछे हरी फिरे कहत कबीर कबीर
इसी तरह निर्मल कर्म ज्योति से ही बड़े कम होते है
ललित जी, मैने आपकी जिंदगी पढी “बैसाखियों से बडी जिन्दगी” और फिर पढे वो विचार वो उदगार जो इन छ: पंक्तियों को पढ कर आपने चाहने वालों ने लिखे. यूँ लगा जैसे ये छ: पंक्तियाँ नही कोई ग्रंथ है जिस पर एक पूरा सेमिनार हो गया। यह होती है रचना की ताकत सर, जो मन को सिर्फ उद्वेलित ही न करे बल्कि एक शास्त्रार्थ पर मजबूर कर दे। बहुत खूब बहुत खूब. बढी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा…….
ललित जी, मैने आपकी जिंदगी पढी “बैसाखियों से बडी जिन्दगी” और फिर पढे वो विचार वो उदगार जो इन छ: पंक्तियों को पढ कर आपने चाहने वालों ने लिखे. यूँ लगा जैसे ये छ: पंक्तियाँ नही कोई ग्रंथ है जिस पर एक पूरा सेमिनार हो गया। यह होती है रचना की ताकत सर, जो मन को सिर्फ उद्वेलित ही न करे बल्कि एक शास्त्रार्थ पर मजबूर कर दे। बहुत खूब बहुत खूब. बढी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा…….
khusha rhe jindagee esa liye jee rhaa|
auro ko khush kruu,khusiya`see rhaa ||
tnmnjn ke drda, gati geeta likh rhaa |
khusha rhe jindagee esa liye jee rhaa||
prarbdh jelnaa hai, hansa ke kh rhaa|
|krma bandhn me badi jindgee jee rhaa||