स्वप्न से स्मृति तक

ललित कुमार द्वारा लिखित, 14 मार्च 2006 को 4:00 प्रात:

कई बार हम सबके जीवन में ऐसा होता है कि हम कोई स्वप्न संजोते हैं लेकिन परिस्थितियाँ इतनी विरुद्ध हो जाती हैं कि वह स्वप्न यथार्थ नहीं बन पाता और स्मृति में तब्दील हो जाता है। मेरी यह कविता इसी प्रक्रिया को बयान करती है। इसी कविता के नाम पर मैनें अपनी इस वेबसाइट का नाम रखा है…

गति मेरे जीवन की दामिनी को भी लजाती है
स्वप्न से स्मृति की दूरी, पल में तय हो जाती है!
मन आंगन में कभी-कभी अवसर ऐसा आता है
समय स्वयं ही कुछ ऐसी वर्षा लाता है
झांक कर जब मैं देखता हूँ तो
मन बगिया में एक स्वप्न पुष्प मुस्काता है

नव स्वप्न-पुष्प यह जीवन में वसंत लाएगा
यूं लगने लगता कि पतझर अब तो जाएगा
अनंत काल बीत चुका हर्ष को आंखें खोले
यह स्वप्न सच हो, खुशियों को जगाएगा

इन्ही आशाओं के बीच खो जाती निराशा काली
बडे चाव से फिर मैं करता स्वप्न-पुष्प की रखवाली
पिछले पुष्पों की हालत का मन में ध्यान किए
विपदाओं से रक्षा हेतु मैं बन जाता इसका माली

यह स्वप्न सत्य होगा इसी विचार में
खोया खोया बंध जाता मैं इसके प्यार में
सब कुछ अर्पण कर देता इसके पोषण में
कभी जीत अपनी समझ लेता मैं अपनी हार में

किंतु यत्न सारे करने पर भी सपना रह जाता सपना
परिस्तिथियों की आंधी आती बना इसे लक्ष्य अपना
दिशाएं सारी एक हो जाती, उद्देश्य एक ही लगने लगता
समय की आंधी रुके नहीं, जब तक नष्ट न हो सपना

आंधी बदन से चीर-चीर उडा ले जाती है
पल में सपन-सलोने की पंखुरियां बिखर जाती हैं
इक पल पहले था जहाँ पुष्प आशाओं का
अब वहां बस स्मृतियों की सुगंध लहराती है

गति मेरे जीवन की दामिनी को भी लजाती है
स्वप्न से स्मृति की दूरी पल में तय हो जाती है!

14 thoughts on “स्वप्न से स्मृति तक”

  1. गति जीवंत रहे सपने समृद्ध रहें
    साँसों मे स्पर्श की भीनी सी महक रहे
    सरगम का साथ रहे गीत आस पास रहें
    भोर की किरण से रात के अंतिम पहर तक
    बस तेरा साथ रहे
    यही चाह दिल में है
    हम तुम अब साथ रहें

    ललित जी यह तो कई गीतों के मुखड़े बन गए लगते हैं

    धन्यवाद

  2. गति मेरे जीवन की दामिनी को भी लजाती है
    स्वप्न से स्मृति की दूरी पल में तय हो जाती है….

    dil ne alag tarah ki khushi mehsus ki is rachna ko padh kar…
    bahut apni si lagi…shayad likhne wale ki safalta isi me hai!!

  3. धर्मेन्द्र कुमार सिंह

    स्वप्नों को स्मृतियाँ तो बनना ही होता है,
    साकार होकर या अंधकार में खोकर,
    कुछ के स्वप्न जल्दी साकार होते हैं,
    कुछ के देर में आकार लेते हैं,
    कुछ के गर्भावस्था में ही मर जाते हैं,
    पर स्वप्न देखना बंद मत कीजिए,
    विश्वास मत छोड़िये,
    नाते मत तोड़िये,
    स्वप्न देखते रहिए,
    कभी न कभी कोई न कोई तो साकार होगा,
    सारे सपने तो ईश्वर के भी सच नहीं होते,
    होते तो मानव क्या ऐसा होता?

  4. Kaveeta Prasad

    Lalit, I wish to see U/your pic in rain, in which u r looking at sky…. with closed eyes n open arms……and the SMILE……….in a red T-shirt.

  5. Saxena_manjula

    lalit this world itself is like a dream. don't u reailize even the ;past memories become a mere dream afer some time. never feel unhappy for there is hardly any difference between experience of senses and drems of mind. be happy u r a pious soul destined to grow spiritually with the passage of time

  6. All dreams are destined to come true otherwise nature would not allow us to have them!!!!!!!!!!!!!!
    swapn se vastavikta tak ke safar ke bich ki kadi…….
    kiran aur andhkar ke madhya hai aasha ki majboot diwar khadi…..
    kise pata smriti ke galiyare se nikal koi lalit swapn kab aakash kusum sa abhiram ban jayega!!!!!!!!!!!!!
    safar jari rahe toh swapn se vastavikta tak ke safar ko bhi ek roz viram mil jayega…!!!!!!!!!!!!!!!!

    so ur poesy inspired me to scribble …….
    thnx.

  7. Rakhi_bakshi2002

    Swapan pani k bulbule hote hain ,lalit ji behad shanbhangur, pal mein bikhar jate hain. bahut sundar kavita hai

  8. मृदुल कीर्ति

    गति मेरे जीवन की दामिनी को भी लजाती है.
    स्वप्न से स्मृति की दूरी पल में तय हो जाती है.
    अब तुम्हारी भावनाएं कविता की नहीं दर्शन की श्रेणी में आ गईं हैं,
    क्यों कि
    इसमें उधार का कुछ नहीं,
    भोगे हुए सत्य की पीर है.

  9. आंधी बदन से चीर-चीर उडा ले जाती है
    पल में सपन-सलोने की पंखुरियां बिखर जाती हैं
    इक पल पहले था जहाँ पुष्प आशाओं का
    अब वहां बस स्मृतियों की सुगंध लहराती है

    agar smirti na ho to ye kavita kaise janam lengi…sunder abhivaykti

  10. Even fakes are known to be iconic. Ever heard of Shroud of Turin? It is a FAKE, proven fake. But still is a famously iconic. The photo is a CLEAR fake. Datt presented this photo WITHOUT any explanatory write up, and VANISHED. Can you not see a person recling on a sofa in the background?

  11. The pining, the longing, the unfulfilled desires! The varied emotions keep the reader engrossed! A beautiful composition indeed!

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