ललित कुमार द्वारा लिखित, 27 जुलाई 2012
आज मन बहुत कष्ट में है
इस मन में कुछ भी नहीं है
यहाँ तक कि न वीराना है
और न ही कोई सन्नाटा
आवाज़ो के साथ यहाँ से
सन्नाटा भी चला गया है
जो कुछ यहाँ हुआ करता था
अब वो कुछ भी यहाँ नहीं है
लेकिन…
इतने विराट ख़ालीपन में भी
न जाने ये कमबख़्त… दर्द
जाने ये दर्द कहाँ से उपजता है
किस तरह ये दर्द उदयशील है
जबकि सृष्टि सारी अस्त में है?
आज मन बहुत कष्ट में है
Strangely I have been to both bay areas 🙂
mmm not convinced dear, share some solid facts to make it false :]
good composition. keep it up
good composition. keep it up
विराट खालीपन में भी दर्द अपनी जगह बना ही लेता है… कैसे ? कौन जाने!
Bhut khoob-jane ye dard kha se……….
छोटी सी चाह
जलते हुए चिराग से की , एक गुज़ारिश,
सूरज की रौशनी की ना है, कोई ख्वाइश |
तेरी लौ ही कर देगी, रौशन काफिला मेरा,
तिनके की बहार से ही, खिल उठेगा चेहरा मेरा |
चंद लम्हों के सहारे, जी लेंगे हम ज़िन्दगानी,
प्यारी है हमकों यादों से भरी,वो एक चाय की प्याली||
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