हृदय का प्याला

ललित कुमार द्वारा लिखित, 05 अप्रैल 2012

अहसास पुराना है… शब्द अब दे पाया हूँ…

हृदय का प्याला जब टूटा
तो आँखों से छलका

उर का दर्द निकल पलकों से
बूंद बूंद बन के ढलका

जब तुमने नहीं समझा तो फिर
मोल समझे कौन इस खारे जल का

आँसुओं से कठोर नियती गलती नहीं
पर रो कर जिया हुआ कुछ तो हल्का

कल जब तुमने संग छोड़ दिया
अब कहाँ ठिकाना मेरे कल का

2 thoughts on “हृदय का प्याला”

  1. so touchy..life is so cruel..so playful it oftenleaves us disillusioned when we expect from others…

  2. समझा गया तो मूल्य है उनका, अन्यथा तो खारा जल ही है वो…, सच! कैसी
    विडम्बना है… खरे हीरे मोती सा जो अनमोल है, वह आंसू खारे जल की तरह वृथा
    ही बह जाता है…!

    एक बूँद आंसू सी आँखों से बह जाती है कविता!

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