हर तारे का एक तारा साथी

ललित कुमार द्वारा लिखित, 16 मार्च 2006

हर तारे का एक तारा साथी

गिन-गिन देखे हमनें तारे
पूरब से पश्चिम तक सारे
मिला नहीं पर कोई ऐसा
हो न जिसका एक तारा साथी

हर तारे का एक तारा साथी

आँख-मिचौली का यह खेल
बस बहुत हुआ अब कर लो मेल
तुमसे हार मुझे लाज नहीं है
मिल जाओ अब मैं हारा साथी

हर तारे का एक तारा साथी

मधुऋतु अपने रंग ओढ ले
नाता मेघ सावन से जोड़ लें
पहुँचु जो उस धरती पर मैं
मिले जहाँ वो प्यारा साथी

हर तारे का एक तारा साथी

8 thoughts on “हर तारे का एक तारा साथी”

  1. Saxena_manjula

    न जाने तारों के मिस कौन निमंत्रण देता मुझ को मौन ..
     

  2. Yashoda Agrawal

    मधुऋतु अपने रंग ओढ ले

    नाता मेघ सावन से जोड़ लें

    पहुँचु जो उस धरती पर मैं

    मिले जहाँ वो प्यारा साथी………
    बेहद खखूबसीरत पंक्तियां…..
    बेसब्री से इन्तजार में…………
    अगली रचना का

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top