ज़िन्दगी की कुछ तस्वीरें... उम्र दो साल: यह मेरी सबसे पुरानी तस्वीर है। तब मैं एक स्वस्थ, सुन्दर, गोल-मटोल शिशु था। उम्र चार साल: दोनों स्वस्थ पैरों पर खड़े हुए यह मेरी अंतिम तस्वीर है। इसके कुछ ही समय बाद मुझे पोलियो हो गया था। उम्र 8-9 साल: यह तस्वीर सफ़दरजंग अस्पताल के किसी फ़ॉर्म में लगाने के लिए ली गई थी। उम्र 14 साल: रक्षा बंधन के दिन की तस्वीर। बाएँ से - नन्हीं पूजा, किशोर, गीता और मैं उम्र करीब 15 साल: इस तरह की ब्लैक-एंड-व्हाइट तस्वीरें अक्सर सफ़दरजंग अस्पताल में कैलीपर बनवाने के लिए ली जाती थीं। इन तस्वीरों के लिए खड़े होना बहुत मुश्किल होता था क्योंकि फ़ोटोग्राफ़र मुझे बिल्कुल सीधे खड़े होने के लिए कहता था। तस्वीर लेने में करीब एक मिनट का समय लगता था और इस दौरान मुझे खड़े-खड़े बहुत दर्द होता था। उम्र करीब 16 साल: हमारे परिवार के इतिहास में एक बड़ी घटना तब हुई जब हम, पहली बार, भारत घूमने के लिए निकले। मेरी यह तस्वीर केरल के कोवलम बीच पर ली गई थी। उम्र करीब 18 साल: अस्पताल के लिये ली गई एक और ब्लैक-एंड-व्हाइट तस्वीर। अस्पताल वाले कहते थे कि फ़ोटो में पोलियो से प्रभावित दोनों पैर दिखने चाहिए -- इसीलिए पैंट नहीं पहनी है। इन तस्वीरों को खिंचवाना बहुत मुश्किल होता था क्योंकि मेरे शरीर के ढांचे में विकार आ चुका था और मुझे सीधे खड़े होने में बहुत दर्द होता था। उम्र करीब 20 साल: मैं अपने कज़िन्स के साथ... उस समय मैं दिल्ली विश्वविद्यालय से BSc Life Sciences कर रहा था। उम्र करीब 21 साल: NIIT से जुड़ना और कम्प्यूटर सीखना मेरे जीवन में एक बड़ा बदलाव था। आस-पास के लोगों ने मुझे स्टेनोग्राफ़ी सीखने की सलाह दी थी -- लेकिन मेरे मन ने स्टेनोग्राफ़ी सीखने के आइडिया को ठुकरा दिया था। मुझे लगा कि मैं इससे कहीं बेहतर कुछ कर सकता हूँ। प्राइमरी स्कूल में भी मुझे यह लगता था कि मेरा जीवन विशेष है और मैं किसी बड़े उद्देश्य को पूरा करने के लिए बना हूँ। GNIIT में मुझे गोल्ड मेडल मिला था... उम्र करीब 22 साल: जीवन में एक और बड़ा मोड़... मैं करीब ढाई साल बिस्तर में रहा और इस दौरान पोलियो करेक्शन और टीबी के लिए मेरे छह ऑपरेशन हुए। यह समय बहुत-बहुत-बहुत लम्बा और शारीरिक व मानसिक रूप से बहुत अधिक दर्दनाक था। उम्र करीब 28 साल: मैंने संयुक्त राष्ट्र के लिए काम करना शुरु कर दिया था। यहाँ अपनी क्षमताओं पर मेरा विश्वास और अधिक बढ़ा। मेरी क्षमताओं पर पोलियो और समाज ने प्रश्न-चिह्न लगा था। उम्र करीब 29 साल: चीन और थाइलैंड के लिए मेरी आधिकारिक यात्राओं ने एक और "असंभव" को संभव बना दिया था। मैं ख़ुश था कि मैं अपने परिवार के इतिहास में विदेश जाने वाला पहला व्यक्ति बना। उम्र करीब 30 साल: स्कॉटलैंड सरकार की ओर मिली पूर्ण स्कॉलरशिप पर मैं एडिनबर्ग गया और वहाँ MSc Bioinformatics की पढ़ाई की। उम्र करीब 31 साल: ब्रिटेन के हेरियट-वॉट विश्वविद्यालय से मुझे परास्नातक की उपाधि मिली। उस समय मुझे लगा कि मैं बहुत दूर निकल आया हूँ... जितना सबने सोचा था -- उससे कहीं अधिक दूर। जीवन के अंधेरे में यह रोशनी की एक किरण थी। इस घटना से मुझे वो आत्म-विश्वास मिला जिसकी उस समय मुझे बेहद ज़रूरत थी। उम्र करीब 32 साल: कनाडा सरकार की ओर से पी.एचडी. करने के लिए मिली पूर्ण स्कॉलरशिप पर मैं क्यूबेक, कनाडा के लवाल विश्वविद्यालय में पी.एचडी. करने के लिए पहुँचा। लेकिन मैं कुछ ही महीनों में वापस भारत लौट आया। यूनिवर्सिटी में मेरे फ़्लैट में जिस दिन यह तस्वीर ली गई उस दिन बहुत बर्फ़बारी हो रही थी। मैं खाने का कुछ सामान खरीदने के लिए बाहर जाने की तैयारी कर रहा था। वर्ष 2011 में मेरे कविता कोश प्रोजेक्ट ने पाँच वर्ष पूरे कर लिए थे। इस अवसर पर जयपुर में आयोजित किए गए एक भव्य समारोह में मैं अपने परिवारजन के साथ। मेरे लिये यह गौरव का विषय था कि मैं अपने परिवार को अपने ही द्वारा आयोजित किये गये एक साहित्यिक कार्यक्रम में आमंत्रित कर सका। वर्ष 2018 में भारत सरकार द्वारा मुझे विकलांगजन के रोल मॉडल का पुरस्कार दिया। यह पुरस्कार एक और बड़ी उपलब्धि थी और जीवन में एक और बड़ा मोड़ था...