पाठक क्या कहते हैं...
विशेष पन्नें
रोज रोज़ गिरकर भी मुकम्मल खड़ा हूँ
जिंदगी देख,मैं तुझसे कितना बड़ा हूँ,,,
एक विराट रोल मॉडल,,,ललित कुमार
सुबह से पढ़ना शुरू किया और शाम तक ,,,,
न जाने कितनी बार आंखें नम हुईं
न जाने कितनी बार दम निकला
कभी सोचता था संघर्ष मेरे जीवन मे बहुत था लेकिन आज समझ आ रहा है
हमने तो सिर्फ रुई के गद्दों पर कुलाटें भरी हैं,कांटों की सेज में तो ये चले हैं और न जाने कितने ऐसे लोग आज भी इसी तरह चल रहे हैं। 4 साल की उम्र में ही पोलियोग्रस्त होना और फिर परिवार का अपने लाडले के जीवन को संवारने का संघर्ष और असंवेदनशील समाज और शिक्षकों की रोज रोज की उपेक्षा का दंश झेलते एक बच्चे की संघर्ष की कथा से शुरू हुई इस किताब का हर पन्ना दर्द के साथ आशावाद की विटामिन्स की खुराक से भरा है।
मेरी जिंदगी में ,,महात्मा गांधी और अब्दुल कलाम जी की आत्मकथा के बाद अब तक कि सबसे पारदर्शी ,प्रेरक आत्मकथा है विटामिन जिंदगी,,,। प्रत्येक शिक्षक और प्रशासक को आइना दिखाती ये किताब मनुष्य की जिजीविषा की जीवंत केस स्टडी है।
शत शत नमन ललित जी आपके संघर्षशील जज़्बे को।
मैंने विटामिन जिंदगी को अमेज़न से बुलाकर पढ़ा और 10 कॉपी और बुलाया है जो मैं शिक्षकों से शेयर करूंगा।
असामान्य से असाधारण होने की यात्रा का पथगामी --ललित
ये जो रेत पर पद चिन्ह हैं, अभी-अभी मेरी पीड़ा यहाँ से होकर गयी है -- ललित द्वारा लिखित पंक्तियाँ
आज उन्हीं पदचिन्हों पर अपने संकल्पित वर्चस्व का अस्तित्व लेकर, साधारण से असाधारण होकर, विकृत से सुकृत, समाज को दर्पण दिखा कर, उन्हीं पीर के पदचन्हों पर फौलादी पावों से कुंठाओं, निराशाओं और त्रिशूली व्यंगों को रौंद कर, उपलब्धियों का अम्बार लेकर, आत्म सम्मान लेकर लौटे हो। आज उन पाँव वालों से पूछो तुम कितना चले हो?
"तुम किसी से कम नहीं " तुम्हें किसी के कंधे की अथवा दया कीआवश्यकता नहीं है ललित। तुम एक विरल पथगामी और जीवन संग्राम के विजेता हो।
आत्म कथा में तुमने सारे मनोभावों और देह की तत्कालीन बिडंबनाओं को दर्पण की तरह पारदर्शी होकर लिखा है, जो अपूर्व आंतरिक साहस का काम है।
अपनी मनोदशा,आर्थिक और पारिवारिक दशा सब कितना सच लिखा है। कहीं-कहीं तो पीर से आखें भी सजल हुई हैं। तुम्हें और तुम्हारे मनोबल को नमन।
यह किताब पाठ्य क्रम में लगने योग्य है।
असामान्य से असाधारण होने की यात्रा का पथगामी --ललित
Dear Lalitji,
I am reading your motivational, Splendid and amazing book “ Vitamin Zindagi”
I accidentally was reading “Kavita Kosh” where I came across this strange name and immediately ordered this treasure from Amazon Prime.
You have so wonderfully narrated the unimaginative problems which you went thru. I have gained a new respect a new honor towards all, and probably become humane also. Your journey in school from Class 1st to 10th and then college are indeed eye--openers, things, which we take so lightly, The way you walked to school, how you learned English, you craft interest(Effiel Tower), library and the humiliation you suffered and the way you climbed buses to reach college are indeed outstanding achievements.
I am still reading chapter “Bani Singh” and I am not able to leave this book. All the time when I am doing some kitchen or house work I am doing short cuts so I can get back and trad the book.
Is there going to be a translation of the book in English?I am the small Hindi Quotes in your book. After reach chapter I keep thinking what you really went thru.
I have also watched some of your YouTube videos and I am ONE OF YOUR ARDENT FANS. I enjoy Hindi Poetry and also attend Kavi- Sammelan. I live in Mumbai, married and have 3 children. I have also had Struggles and battles, but nothing compared to what you have seen and overcome.
YOU ARE MUCH BETTER THAN ALL OF US, AND YOU LIVE TRULY A LIFE.
You have lacks o followers, but PLEASE REPLY TO ME.
I WANT TO MEET YOU ONCE AND I DO NOW KNOW WHEN AND HOW? BUT WHEN DAY I WILL MEET YOU.
Thank you,
ALKA RATHI
विटामिन ज़िन्दगी विकलांगो के प्रति एक नई क्रांति लायेगी।
विटामिन ज़िन्दगी को जब पढना शुरू किया तो मुझे पता ही नहीं चला कि कब मैं अपने बचपन बीते हुए वर्षो में पहुच गया और सब मेरी आखों के सामने चलचित्र की तरह चल रहे थे और मुझे वो सब बीते हुए समय याद आ रहे थे और मैं बीते हुए दिन में कब खो गया मुझे पता ही नहीं चला और ना जाने ऐसी कितने बीती हुए यादे है जो विटामिन ज़िन्दगी से यादें तरोताजा हो गयी।
जिस तरह किताब को गिरना, संभालना और उड़ान में पारिभाषित किया है वो बहुत ही अच्छा है और इसने बहुत प्रभावित भी किया क्योंकि हम जब गिरते है तभी संभलते है और सब संभलते है तभी उड़ान भरते है और ललित जी के संघर्ष,धैर्य,हौसले,विश्वास,सकारात्मक नजरिया से ही उन्हें जीवन में इतनी ऊचाई और शौरह्त हासिल की है | इसी तरह हर किसी को अपने जीवन में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए क्योंकि संघर्ष,धैर्य,हौसले,विश्वास,सकारात्मक नजरिया के बिना जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता है और यही है कि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत।
ललित जी ने जो सपना देखा वो पूरा करने के लिए अपने पुरे हौसले के साथ आगे बड़े और इसी का नतीजा रहा कि उन्होंने विदेश में पढाई की और संयुक्त राष्ट संघ में नौकरी की और भारत सरकार ने उन्हें रोल मॉडल में राष्ट्रिय पुरस्कार से सम्मानित किया है।
विटामिन ज़िन्दगी किताब हर किसी को पढ़नी चाइये और लोगो को भी पड़ने के लिए प्रेरित करे जिससे लोग ये जान सके कि किस तरह विकलांगो के साथ बर्ताव करना चाइये और उन्हें आपके साथ की जरुरत है ना कि हर समय मदद और सहानुभूति की।
ललित जी आपको अपनी पहली किताब आत्मकथा विटामिन ज़िन्दगी के लिए बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनायें। आप स्वस्थ रहे और जीवन में आगे बढते रहे।
ललित कुमार ने अपने आत्मकथात्मक उपन्यास को बड़ा सटीक शीर्षक दिया है- “विटामिन ज़िंदगी’. हमारे आस-पास और भीतर भी बहुत कुछ कुरूप, पीड़ादायी, असंगत और अमानवीय रहता है. जिस शक्ति के सहारे हमारा अंतर्मन जीने का सौंदर्य-बोध ढूंढ लेता है, जीवन और परिवेश में सुसंगति स्थापित कर लेता है और तमाम पीड़ाओं और दुख-दर्द के बीच प्रेम-करुणा और साह्चर्य को एक विराट मानवीय संरचना का कारक समझ लेता है, उस शक्ति के लिये ‘विटामिन ज़िंदगी’ अच्छा नाम है. यह कहानी पढ़ी जाती हुई हमारे भीतर हताशा, कुंठा और नकारात्मक क्षोभ जैसी कमज़ोरियों को मार कर विटामिन की तरह ही जीजिविषा की ऊर्जा भरती जाती है. क़िताब पूरी ख़त्म होते होते हमें अपने कई तथाकथित दुख और दुनिया से शिकायतें छोटी लगने लगती हैं.
यह कोई समीक्षा नहीं है । यह किताब समीक्षा किए जाने जैसे प्रयास से बहुत ऊंचा कद रखती है । यह किताब नहीं है, दरअसल यह जीवन है।
विटामिन जिंदगी लिखने के लिए। काफी दिनों से खुद की काबलियत पर संदेह हो रहा था।अब काफी हल्का महसूस कर रहा हूं। अब लगता है कुछ भी मुश्किल नही है अगर ठान ली जाए।
इस किताब ने काफी चीज़ों को बदला है और बदलेगी खासकर विकलांगो से कैसे बर्ताव करना है।ऐसे ही नित नए काम करते रहिए मैं हमेशा तैयार हूं किसी भी सहयोग के लिए। बहुत बहुत धन्यवाद आपके परिवार वालों को जो आप में इतनी दृढ़ इच्छाशक्ति पोषित की।
मैंने इतनी रोचक और पाठक को जोड़े रखने वाली आत्मकथा नहीं पढ़ी है। विटामिन ज़िन्दगी ख़ुद को पढ़वाना जानती है।
इस किताब में एक ऐसे लड़के की कहानी है जिसने कदम-कदम पार जानलेवा कठिनाइयों का सामना किया। ऐसी मुसीबतों से दो-दो हाथ किया जिनसे आम आदमी का सामना हो जाय तो वो टूट कर बिखर जाय। तमाम अभावों, तमाम कठिनाइयों, तमाम मुसीबतों का सामना करते हुये उस लड़के ने एक दिन समाज की गढ़ी हुई तमाम मान्यताओं और सीमाओं को ध्वस्त कर दिया। जिस लड़के का जीवन में कभी अपने पैरों पर खड़े हो पाना तक असंभव माना जा रहा था उस लड़के ने अपने दम पर स्कालरशिप हासिल कर एक विदेशी विश्वविद्यालय से शिक्षा हासिल की। जमाने की तमाम कड़वाहट का सामना करते हुये, विष के असंख्य घूँट पीते हुये भी उस लड़के ने कभी अपने दिल में कड़वाहट नहीं आने दी। इस पुस्तक को पढ़कर आपको पता चलेगा कि हमारा ये भारतीय समाज विकलांगों के प्रति कितना असंवेदनशील रहा है और आज भी हमारे इस समाज की सोच में आमूलचूल परिवर्तन की आवश्यकता है। इस देश के हर व्यक्ति को यह किताब पढ़नी चाहिये ताकि उसमें विकलांगो के प्रति संवेदना और सहानुभूति जागृत हो सके। यहाँ मैं स्वर्ग प्राप्ति की आकांक्षा से उपजी दिखावे की संवेदना और सहानुभूति की बात नहीं कर रहा हूँ। विकलांगो को बराबरी का दर्जा देना और उन्हें कमजोर और कमतर न समझना इस किताब का ऐसा संदेश है जिसे सिर्फ भारत में ही नहीं संपूर्ण विश्व में प्रसारित किये जाने की आवश्यकता है। यह किताब जरूर पढ़ें और अपने दोस्तों को भी पढ़वायें।
‘मैंने मिट्टी देखी है, मिट्टी से बने पुतले और प्रतिमाएं भी देखी है किन्तु कलाकार की कला में जो ‘जान’ डाली जाती है असल में आप वो ‘जान’ ही हो। प्रकृति माँ ने उस दिन ईश्वर की कला में एक ‘जान’ डाली थी जो आज ‘ललित कुमार’ के नाम से जानी जाती है।
किताब को पढने के साथ-साथ मैंने अपना जीवन भी जिया, आँखों के सामने बीते ३० वर्ष घुमने लगे, फिर चाहे वो छत्त पर पुरे परिवार का एक साथ सोना हो, नूतन का स्टोव हो, दूरदर्शन से जुडी यादें हो, कॉमिक्स की दुनिया हो (सुपर कमांडो ध्रुव मेरा भी सबसे पसंदीदा पात्र है), स्कूल की दुनिया, घर पर बनी प्रयोगशाला, अख़बारों की ख़बरों को काट कर किताबों में चिपकाना, चार लाइन वाली किताब लाना, अंग्रेजी भाषा के साथ जूझना... ना जाने ऐसे कितनी ही यादें है जो इस किताब के माध्यम से फिर से तरोताजा हो गयी।
चार वर्ष की उम्र से लेकर अभी तक की आपकी जो जीवन यात्रा है वो मन को अन्दर तक झकझोर देती है। समाज की असंवेदनशीलता को नंगा करती है।
किताब के माध्यम से मैंने जाना कि बचपना आपके अन्दर से कभी गया ही नहीं आप आज भी बच्चे ही हो, एकदम कोमल... स्वच्छ।
बाल मन को जब चोट पहुंचती है तो वो उस दर्द में कुछ निर्णय करता है, सपने देखता है और जब चोट हर समय पड़ती है तो तो व्यक्ति टूट जाता है किन्तु आप ‘चन्दन के वृक्ष के तरह निकले जितनी भी चोटे पड़ी आपने अपनी महक नहीं छोड़ी, अपना मूल स्वभाव नहीं छोड़ा और यही वजह है की आप आज ना-जाने कितने ही जीवन को महका रहे हो।
आपके जीवन की एक और बात जिससे मुझे और अधिक प्रेरणा मिलती है वो है निष्काम कर्म। समाज को आशा और अच्छे विचार को देने की ललक। समाज की असंवेदनशीलता ने आपके जीवन को ज़हर बनाया पर उसे पता नहीं था ललित के मन में बनी एक छोटी सी प्रयोगशाला में उसी ज़हर से विटामिन बनाया जाता है। आपको बारम्बार प्रणाम।
आपसे मिलने की इच्छा है ईश्वर से प्रार्थना करूँगा आपसे जल्दी ही मुलाकात हो।
पढ़ते पढ़ते महसूस होता है कि हम घटनाओं के साथ में ड़ूब उतर रहे हैं.एक के बाद एक घटनायें चलचित्र की तरह आँखों के सामने तैरने लगती हैं. किताब एक जीवन-सफ़र है.कठिनतम दौर से गुज़र कर मुकाम हासिल करने तक का सफ़र. सिर्फ कदमों से तय किया गया सफ़र नहीं.. दृढ़निश्चय से तय किया गया सफ़र,आत्मविश्वास से तय किया गया सफ़र, नई राह बनाता सफ़र ..ज्यादा कुछ कहना सूरज को दिया दिखाना होगा.
सभी को जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करती पुस्तक- विटामिन ज़िन्दगी.
'विटामिन ज़िंदगी' हौसले, धैर्य और मेहनत की नई परिभाषा गढ़ने को अग्रसर। अपने जीवन के उत्तर खोजने में मदद करने वाली रचना। समाज को संवेदनशील बनाने का प्रयास करती है ललित कुमार जी की 'विटामिन ज़िंदगी'। ये लेखक की कोरी कल्पना नहीं है। इस उपन्यास की यात्रा को लेखक ने खुद जिया है। इसलिए बेहतर करना हो तो पढ़नी चाहिए 'विटामिन ज़िंदगी'।
विटामिन ज़िन्दगी महज पुस्तक नहीं, एक कृति नहीं, संस्मरण नहीं जीवटता का ऐसा दस्तावेज़ है जो हर किसी को पढ़ना चाहिए। यह हर निराश व्यक्ति के लिए संजीवनी साबित होगी। यह एक ऐसी कृति है जिसे हर स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए और हर भाषा में अनूदित किया जाना चाहिए।
मैं इस पुस्तक के लेखक "श्री ललित कुमार" से पिछले ५ या ६ सालों से सोशल मीडिया 'फ़ेसबुक' पर जुड़ा हूँ। अभी तक व्यक्तिगत तौर पर मिलने का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ है। 'दशमलव' (ललित जी का ब्लॉग) पर सबसे पहले जुड़ा और उनके तकनीकी ज्ञान, सामाजिक समस्याओं के प्रति उनकी अनोखी दृष्टि और उनके बेहद ही सुलझे और आकर्षक व्यक्तित्व का प्रशंसक बनता चला गया।
मैं अमेज़न किंडल पर पुस्तक पढ़ने का आदी हूँ, इसलिए जब ये किताब किंडल पर उपलब्ध हुई तो घंटे भर के भीतर ही मैंने इसे ख़रीद लिया। ऐसा अति उत्सुक मैं बहुत कम चीज़ों को लेकर ही होता हूँ, किंतु यह किताब मुझे दूर से ही आवाज़ देकर बुला रही हो मानो! मैंने जब इसे पढ़ना शुरू किया तो लेखक के प्रशंसक के तौर पर नहीं बल्कि एक उत्सुक पाठक के तौर पर ही शुरूआत की थी। ज्यूँ ज्यूँ आगे बढ़ता गया, मुझे ललित और उनकी शख़्सियत से प्यार होता गया! उनकी पुस्तक से ही कुछ वाक्य उद्धृत कर रहा हूं -
"यदि आप मुश्किलों से नहीं भागते, यदि आप संघर्ष करते हैं तो एक दिन आप अवश्य जीत जाते हैं। संघर्ष का अंधकारमय समय लंबा, बहुत लंबा, बहुत-बहुत लंबा चल सकता है… लेकिन एक पल ऐसा ज़रूर आता है, जब पंख खुलने का एहसास होता है और उगते सूर्य की तरफ़ आपकी उड़ान आरंभ होती है।"
- इस पंक्ति में जो जीवन की सच्चाई को परख पा रहे हैं, उन्हें यह पुस्तक अनिवार्यतः पढ़नी चाहिए नहीं तो आप एक अज़ीम अनुभव से वंचित रह जाएँगे!
"बार-बार गिरकर भी आगे बढ़ते रहने का उदाहरण भला चींटी ही क्यों हो? हम ख़ुद भी तो ऐसा उदाहरण बन सकते हैं!"
- लेखक की अदम्य साहस से भरी है ये पुस्तक! हरेक शब्द में सच्चाई और जीवन को बेहतर और बेहतर, ऊँचा और ऊँचा, कभी न रुकने की ज़िद और उसी ज़िद के सहारे जीतने के अथक प्रयास की बानगी है यह पुस्तक!
"दुख और असफलता जीवन के इंजन के लिए बेहतरीन ईंधन का काम करते हैं।"
- मेरी दृष्टि में इससे ज़्यादा motivating statement हो ही नहीं सकता! हार और तकलीफ़ से जूझते हुए आप अपने दर्द और पसीने को अपने इंजन के इंधन के रूप में देखने लगें, फिर सफलता क्यूँ न मिलेगी भला?
"पोलियो ने मुझसे दौड़ने की शक्ति छीन ली, लेकिन दौड़ने की इच्छा नहीं छीन सका…"
- ललित जी को असंख्य धन्यवाद! अपनी ज़िंदगी में पाठकों को शामिल कर उन्होंने समाज को सहज मानविकता का पथ दिखलाया है, व्यक्ति को अपनी सीमाओं से लड़ने की और जीतने की उत्कट लालसा देने की कोशिश की है। न केवल विकलांग भाई-बंधुओं को बल्कि यह हर उस कमज़ोर इंसान में हिम्मत और साहस भरने की सार्थक कोशिश है जो कमज़ोर तो हैं लेकिन सपने देखते हैं और उन्हें प्राप्त करने की चाहत रखते हैं।
स्वयं पढ़िए और मित्रों को भी पढ़ाइए! एक बेहद सुखद अनुभूति से लबरेज़ हो उठेंगे मेरा दावा है!
धन्यवाद ललित जी!
ये किताब ललित कुमार का जीवन है। इसे अच्छा, बुरा या ठीक है में श्रेणीगत नहीं किया जाना चाहिए। ललित जी ने अपने जीवन संघर्ष को जो 4 वर्ष की उम्र से अब तक चल ही रह है, को शब्दबद्ध किया है। उनके जीवन की संघर्ष यात्रा ना जाने कितनों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकती है। ललित का संघर्ष एयर उनकी जीवनीशक्ति हम सब के लिए सीख है जो हर छोटी-मोटी परेशानी से या तो थक-हार जाते हैं या अवसाद ग्रस्त हो जाते हैं।
किताब के पीछे बिल्कुल ठीक लिखा है "आओ जीवन जीना सीखें"।
जीवन में सब कुछ बना बनाया नहीं मिलता। हमें जीवन को बनाना होता है... जीवन को सजाना होता है। कमियाँ तब तक कमियाँ हैं जब तक हम उसे अपनी कमियाँ मानते हैं। जीत मुमकिन है... बस विश्वास रूपी विटामिन की कमी न हो। यह पुस्तक विश्वास रूपी विटामिन की कमी दूर करती है।
सीढ़ियाँ उन्हें मुबारक हो, जिन्हें छत तक जाना है
मेरी मंज़िल तो आसमान है, रास्ता मुझे खुद बनाना है।
#विटामिन ज़िन्दगी आपकी किताब का सार ऊपर लिखी चंद पंक्तियों में समाहित है Lalit जी।
'विटामिन ज़िन्दगी' एक ऐसी किताब है जिसे पढ़ते हुए विश्वास करना पड़ा कि 'इच्छाशक्ति' हो तो सपनो को पंख मिलते हैं और उड़ान दुनिया देखती है।
जी तो हर कोई लेता है लेकिन सम्मान के साथ जीने का संघर्ष वाकई बहुत कठिन था आपके लिये जिसे शायद हम साधारण लोग महसूस भी नहीं कर सकते। किताब पढ़ते हुए कई बार ग्लानि भी हुई कि हम दूसरों की तकलीफ या ज़रूरत को कितना महत्वहीन समझते हैं।
आपकी सोच और जिजीविषा ही आपको विशिष्ट बनाती है। 'असामान्य से असाधारण' होने का सफर पढ़ना एक नए अनुभव से गुजरना सिद्ध हुआ।
अंत में आपकी किताब विटामिन ज़िन्दगी से उद्धत कुछ पंक्तियां...
देखिये, असमान होना और असमान मानना- इसमें फर्क है। प्रकृति में कहीं कुछ ज़्यादा है, तो कहीं कुछ कम है। एक ओर रेगिस्तान है, तो दूसरी ओर महासागर है। यदि भौतिक असमानता न होती तो न दुनिया बन सकती थी और न ही व्यवस्था चल सकती थी ..... मन से किसी को असमान न माने। कोशिश करें कि असमानता आपके मन से व समाज से समाप्त हो जाये।
आप जैसा दोस्त रोल मॉडल ही हो सकता है, आप राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए पूरी तरह योग्य थे। हमें आप पर गर्व है आपकी किताब 'विटामिन ज़िन्दगी' एक दृष्टान्त बने यही शुभकामना है।😊
विटामिन ज़िंदगी को पढ़ना शुरू किया है और शुरू करने के बाद से ही इसका कंटेंट पढ़कर बहुत उत्साहित हूँ। हालाँकि, बचपन से ही एक क़िताबी-कीड़ा रहा हूँ तो जहाँ से मिलता है ज्ञान को समेट लेता हूँ और इसी फेर में कितनी ही मोटिवेशनल-बुक्स पढ़ चुका हूँ अब तक... लेकिन इस क़िताब का पैटर्न कुछ अलग है, और तरीक़ा भी बात कहने का... हालाँकि, ज़िंदगी मेरा भी पसंदीदा विषय है और इसीलिए ख़ुद का अपना एक फेसबुक पेज #बिखराव होने के बावजूद जहाँ बीस हज़ार से ज़्यादा फॉलोवर्स हैं, और जहाँ मैं ख़ुद ज़िंदगी को लिखता हूँ, कई सारी मोटिवशनल बातें बाँटता हूँ, फ़िर भी आपकी क़िताब एक और चीज़ देती है, एक ख़ूबसूरत नज़रिया।
बहुत शुक्रिया, मेरे ख़यालों को एक और नज़रिया देने के लिए, ज़िंदगी को इस क़िताबी के ज़रिए एक नया विटामिन देने के लिए..बहुत शुक्रिया 🙂
सोना तप कर ही दमकता है और हीरा घिस कर ही चमकता है, इस बात को इस पुस्तक ने एक बार फिर साबित कर दिया है| लेखक ने बड़ी ख़ूबसूरती से अपने जीवन की चुनौतियों और उन पर विजय पाने की गाथा को पेश किया है और वह भी बिना किसी कड़वाहट के। विकलांगों के प्रति नजरिये पर भी यह पुस्तक एक जबरदस्त प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। कुल मिला कर एक शानदार पुस्तक जिसमें हर एक पाठक के लिए कुछ न कुछ सार्थक है।
Viral fever has made me insomniac since last few days. Instead of tossing, turning and forcing myself to sleep tonight, I picked up Lalit Kumar 's विटामिन ज़िन्दगी.
An inspiring and much needed autobiography or you can also term it as a memoir, it has brought a few droplets in my eyes. But I am glad to write that I have never felt so positive in my life as I am feeling right now.
A must read book, it should not be missed by anyone. We are often afraid of falling, we find ourselves in situations, that we consider to be the worst for us and we tend to lose our hopes. A life led by us is nothing as compared to Lalits'. Just imagining his life is making me feel so ... Sorry, I cannot put it into words!
Message of the book :Nothing, absolutely NOTHING, can make you fall or regret in life. It's you, who needs to add ample vitamins in your life, to face every situation and emerge as a WINNER. Read it, make others read it and have some gratitude towards the happy life that you are leading.
A big thank you to all the people, who have knowingly or unknowingly, supported me in every walk of my life!
ललित का आत्मवृत्त 'विटामिन ज़िंदगी' आज दो बैठक में पढ़ ली। कविता कोश जैसे प्रोजेक्ट के सूत्रधार, इस जिद्दी,जुझारू, जिंदादिल इंसान की गाथा को हर उस व्यक्ति को पढ़ना चाहिए जिसने अपने जीवन मे कभी भी हल्की सी भी निराशा अनुभव की है।
पुस्तक समीक्षा : अवश्य पढ़ें। 2019 में अब तक पढ़ी सबसे बेहतरीन पुस्तक।
निश्चित ही लेखक 'अपर पंथ' अपनाने वाले वह यात्री हैं जिनके लिए अपरिग्रह का सिद्धांत और स्वयमसेवा का मूलमंत्र की जीवन-गीता है। कहते हैं सत्संग के समान न कोई दूसरा तप है न कोई दूसरा सुख। आपको यह किताब सत्संग के सुख के लिए भी पढ़नी चाहिए। इस पुस्तक को पढ़ने के अनगिन कारणों में से एक यह भी है कि ज़िंदगी जीते हुए हम जान ही नहीं पाते कि ये है क्या शय; यह पुस्तक उस पुल का काम करती है जो हमारी क्षीण जिजीविषा को आस की बैशाखियों के सहारे विशुद्ध जीवन तक ले जाती है। वहाँ से फिर सबका सफ़र अपना-अपना होना है लेकिन वहाँ तक पहुँचने में यह वो पुल सिद्ध होना है जिसके प्रभाव से आप आजन्म निकल नहीं पाएँगे और यह एक अच्छी बात है। यह किताब आपको अपने लिए पढ़नी चाहिए। ये किताब आपको अपनी ज़िंदगी में एक सकारात्मक बदलाव लाने की प्रेरणा के लिए पढ़नी चाहिए।
"आइये जीवन जीना सीखें ..."
सच में यह एक ऐसी पुस्तक है जिसे सबको पढ़ना चाहिए। इस पुस्तक में संघर्ष है, जीवन जीने की कला है, किसी भी हालत में हार न मानने की सीख है।
लोग निराश न हो कर अपने जीवन में कैसे आगे बढ़ सकते है , यह पुस्तक हमें यह शिक्षा देती है। यह पुस्तक हमें भावुक कर देती है तो सोचिये - ललित जी ने तो इतना संघर्ष किया और खुद को एक मुकाम पर ले कर गए खुद की एक पहचान बनायी यह सोच कर दर्द की जगह गर्व होने लगता है।
ललित जी को सरकार से रोल मॉडल का खिताब भी मिला। वो सच में ही रोल मॉडल है यह पुस्तक पढ़ कर तो इतना समझ में आ ही गया। आपको इस पुस्तक के लिए बहुत बहुत बधाई।
एक अनुरोध यह है कि यह पुस्तक एक बार ज़रूर पढ़े, कष्ट की परिभाषा परिवर्तित हो जाएगी यह हमारा संघर्षपूर्ण जीवन है वो गलतफहमी दूर हो जाएगी।
अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए
जो थक कर बैठ जाते हैं वो मंज़िल पा नहीं सकते
"फिर भी जीत मैं जाऊँगा, विश्व तुम बस देखना"
One of the best memoir written in an Indian language.
Rating: 5 out of 5★★★★★