मेरे मन के भाव उलझे-उलझे से रहते हैं। कभी-कभी जब मैं इन्हें सुलझा पाने में सफल होता हूँ तभी इन्हें शब्दो में ढाल पाता हूँ। मैंने हमेशा पाया कि इन भावों से तुम्हारा गहरा सम्बंध है। कुछ भाव प्रसन्नता देते हैं तो कुछ पीड़ा देते हैं —लेकिन इन सभी भावों में बस तुम ही हो। मेरे मन के भीतर तुम ही तो हो। तुमने मुझे इतना कुछ दिया है कि मैं उसे संभाल नहीं पाता और इसी कारण मेरे मन में ये भावनाएँ उलझ जाती हैं।
मेरे मन की भूमि पर तुमने भांति-भांति के भावों का एक उपवन रचा है। साथ ही तुम्हारी प्रतीक्षा ने मुझे इन भावों को शब्दों में प्रकट करना सिखाया है। इसी उपवन से कविताओं के कुछ पुष्प चुन कर, मन ही मन, तुम्हारे चरणों में अर्पित कर रहा हूँ। स्वीकार करो।
ललित
itna sachcha aur pyara samarpan hai …..bhala kaun nahi sweekar karega. 🙂